मानो या ना मानो (भाग-प्रथम)

अप्रैल माह में इस तरह रिमझिम बरसात का होना, तापमान में गिरावट आना, प्राण घातक वायरस को संरक्षण की ओर संकेत करता है। पूरे विश्व में त्राहि-त्राहि मची हुई है। हर व्यक्ति श्मशान वैराग्य की ओर उन्मुख है। अब प्रत्येक व्यक्ति यह सोच रहा है सब मिथ्या है ।
ये सब क्यूँ हुआ?
इन सबका जिम्मेदार कौन है?
मित्रों ये सब आपकी व हमारी वजह से हुआ है।
हमनें असीमित रूप से प्रकृति के साथ छेड़छाड़ किया है।
हम निरन्तर पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे है और तो और हम सबने स्वयं की मूल प्रवृति और मूल प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की है।
हम इन्सानीयत को भूल चुके हैं,
हमने कदाचार को बढ़ावा दिया है,
हमने मानवता को शर्मशार किया है,
हमने स्वयं को सर्वोपरी माना है,
हमने पर परम शक्ति को चुनौती दी है,
हमने निजी स्वार्थवश अनगिनत लोगों की हत्या की है,
हमनें एक दूसरे के अधिकारों का भक्षण किया है,
हमने रिश्तों को कलंकित किया है,
हम ही हैं जिन्होंनें लहलहाते वनों को श्मशान बना दिया,
हम ही हैं जिन्होंने असहाय स्वच्छन्द विचरण करने वाले असंख्य प्राणीयों की निर्ममता से हत्या कर दी।
हम ही वो लोग हैं जिन्होंने गरीबों को ओर भी गरीब बनाया।
आज हम उन्हें पैकट बांटकर उनकी मदद नहीं कर रहे वरन् उनका ऋण चुका रहे हैं।
उनका निवाला छीनने वाले हम ही हैं।
उन्हें आज इस स्थिति में पहुचानें वाले हम ही हैं।
परमात्मा ने सबको नंगा करके भेजा था कि किसी को ये घमण्ड ना हो कि मैं सब कुछ साथ लेकर आया हूँ। पर कदाचित् यह नंगा व्यक्ति समझ नहीं पाया और आते ही दूसरा के अधिकारों का हनन करके पालित और पोषित होता रहा। आज उस व्यक्ति को परमात्मा ने यह अहसास कराया है कि जिसका जितना तूने निवाला छीना है उसे तू लौटा दे वरना तुझे उसे यहीं छोड़कर जाना है।
कोरोना के माध्यम से परमशक्ति ने प्रत्येक प्राणी को यह अहसास कराया है कि में वो महानतम् महाशक्ति हूँ जिसे कोई रोक नहीं सकता।
में महाशक्ति अमेरिका को जन्म देने वाला जन्मदाता हूँ।
में ही रूस और चाईना का भाग्य विधाता हूं।
आज वह सबसे चिल्ला-चिल्ला कह रहा है मुझे
को: कोई
रो: रोको
ना: ना
ये बरसात की बूँदें नहीं हैं, ये विकृति और आहत प्रकृति के आँसू हैं। आज वो रो-रो मानों हमसे कह रही है बस करो मेरे पुत्रों! तुमने मेरा बहुत अपमान किया है मैं मेरा मातृत्व वापिस ले रही हूँ, अब तुम्हें मेरी गोद में कोई स्थान नहीं है। और आज आप मानों या ना मानों, इसलिये हम सभी असहाय और भयग्रसित हैं, क्यूँ कि प्रकृति और पृथ्वी माँ का हाथ हमारे सिर पर नहीं है।
मेरे प्यारे दोस्तों, यही यथार्थ है।
अब भी वक्त है हम सम्बन्धों का आदर करें।
प्रकृति का संरक्षण करें।
प्रवृत्ति का पुनरीक्षण करें।
नियति का सम्मान करें, उसका स्वयं निर्धारण ना करें, उसे परमात्मा पर छोड़ें।
स्वयं को बचाकर क्या करोगे, जब सब कुछ नष्ट हो जायेगा, तो किस पर शासन करोगे?
किसे दिखाओगे, आपका संचित सग्रह?
जब श्रोता ही नहीं रहेगा तो आपका वक्तव्य सुनेगा कौन?
इसलिये आओ हम सब मिलकर एक नई विचारधारा को पल्लवित व पोषित करें, नये राष्ट्र का निर्माण करें।
मानवता का सम्मान करें।
परमात्मा के उस निराकार स्वरूप और सत्ता को स्वीकार करें जो आज आपके आर्तनाद् में है।
मित्रों मानों या ना मानो,
सच तो यही है कि-
परमप्रभू महाशक्ति निर्विवाद है, नये युग की शुरूआत है,
ऊँ सत् चित् आनन्द जय महाप्रभू।
जय महाकाल।
प्रो. रामकेश आदिवासी,
गंगापुर सिटी (सवाईमाधोपुर)
इसकी अगली कड़ी के लिए देखते रहें…
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