द्वारकाधीश मंदिर: श्रीकृष्ण के राजसी रूप की भव्य पूजा और चारधाम का पश्चिम द्वार

गर्भगृह में विराजमान भगवान द्वारकाधीश की मूर्ति
गुजरात के द्वारका में स्थित द्वारकाधीश मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के राजसी रूप को समर्पित है। यह मंदिर चारधाम तीर्थों में पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व करता है और वैष्णव परंपरा का प्रमुख केंद्र है।

Dwarkadhish Temple Gujarat गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित द्वारकाधीश मंदिर, जिसे जगत मंदिर भी कहा जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के राजसी रूप को समर्पित है। यह मंदिर हिंदू धर्म के चारधाम तीर्थों में पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व करता है और वैष्णव परंपरा का एक प्रमुख केंद्र है।

द्वारकाधीश की पूजा का मुख्य कारण भगवान कृष्ण की राजधर्म, करुणा और धर्मस्थापन की भावना है। यहाँ श्रीकृष्ण को द्वारका के राजा के रूप में पूजा जाता है — न बाल रूप में, न गोपाल के रूप में, बल्कि एक पूर्ण नायक और धर्मसंस्थापक के रूप में। मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने यदुवंश की रक्षा हेतु समुद्र से भूमि निकालकर द्वारका नगरी की स्थापना की थी।

Dwarkadhish Temple Gujarat

मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार मूल मंदिर का निर्माण लगभग 200 ई.पू. में हुआ था। इसे कई बार आक्रमणों में ध्वस्त किया गया — विशेष रूप से 1473 ई. में महमूद बेगड़ा द्वारा। वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण 15वीं–16वीं शताब्दी में हुआ और इसका विस्तार 1730 ई. में किया गया।

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मंदिर की वास्तुकला मारू-गुर्जर शैली में निर्मित है — पाँच मंज़िला संरचना, 72 नक्काशीदार स्तंभ, और 43 मीटर ऊँचा शिखर। गर्भगृह में भगवान द्वारकाधीश की मूर्ति काले पत्थर की बनी है, जिसमें वे चार भुजाओं में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए हैं। मंदिर का मुख्य द्वार स्वर्ण ध्वज से सुसज्जित है, जो प्रतिदिन समुद्र की दिशा में लहराता है।

Dwarkadhish Temple Gujarat

यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की राजसी भक्ति परंपरा, श्रीकृष्ण की कर्मभूमि, और आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक भी है। यहाँ हर वर्ष जन्माष्टमी, होली, और एकादशी पर लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।