
लगातार हो रही भारी बारिश और नदियों पर अतिक्रमण से बढ़ा खतरा, विशेषज्ञों ने चेताया – नदियों को उनका असली घर लौटाना होगा
नई दिल्ली। उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर से निकलने वाली नदियों ने एक बार फिर अपना रौद्र रूप दिखा दिया है। हालिया भारी वर्षा के बाद इन नदियों के तेज बहाव ने घर, सड़कें, पुल और फसलें बहा दीं। पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड के कई हिस्सों में जन-धन की भारी क्षति हुई है। धार्मिक यात्राएं और पर्यटन स्थलों पर तबाही मची है।
नदियों की नाराजगी का असली कारण
Himalayan Rivers Flood: विशेषज्ञों के अनुसार, नदियों का उफान कोई असामान्य घटना नहीं है। दरअसल, नदियां अपने बहाव क्षेत्र में फैलकर ही धरती को उपजाऊ बनाती हैं। लेकिन पिछले पांच दशकों में तालाब, झीलें और जल स्रोत नष्ट कर दिए गए। बरसात का पानी सीधे नदियों में गिरने से उनका दबाव बढ़ गया।
इसके अलावा, नदी किनारों पर हो रहे अतिक्रमण, गाद का जमाव और अनियंत्रित निर्माण कार्यों ने नदियों का प्राकृतिक रास्ता रोक दिया है। जब पानी के प्रवाह को रोका जाता है, तो वह बाधाएं तोड़कर अपनी पुरानी राह तलाशता है। यही वजह है कि छोटी-सी बारिश भी बड़े जलप्रलय में बदल जाती है।
हिमालय और नदियों पर खतरा
हिमालय अभी भी ‘युवा पर्वत’ माना जाता है और इसे स्थिर होने में हजारों साल लगेंगे। इस बीच, बेतरतीब विकास, वनों की कटाई और पर्यटन के नाम पर अनियोजित निर्माण ने स्थिति को और विकट बना दिया है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर नदियों के मार्ग और जलग्रहण क्षेत्र में छेड़छाड़ जारी रही तो आने वाले सालों में और बड़ी तबाही देखने को मिलेगी।
नदी की स्मृति और चेतावनी
एक्सपर्ट्स का कहना है कि नदियां कभी अपना रास्ता नहीं भूलतीं। सौ साल पहले जहां वे बहती थीं, वहां फिर लौट सकती हैं। इसलिए जरूरी है कि नदियों के प्राकृतिक घर को लौटाया जाए, ताकि आपदाओं को रोका जा सके।