कांची कामाक्षी मंदिर: माँ आदिपराशक्ति का जागृत धाम और श्रीचक्र की ऊर्जा का केंद्र

गर्भगृह में पद्मासन मुद्रा में विराजमान माँ कामाक्षी
कांचीपुरम में स्थित कांची कामाक्षी मंदिर देवी आदिपराशक्ति के शांत स्वरूप को समर्पित है। यह मंदिर श्रीचक्र प्रतिष्ठान, द्रविड़ स्थापत्य और दक्षिण भारत की शाक्त परंपरा का प्रमुख केंद्र है।

Kanchi Kamakshi Temple दक्षिण भारत के प्राचीन नगर कांचीपुरम में स्थित कांची कामाक्षी मंदिर देवी कामाक्षी को समर्पित है, जो आदिपराशक्ति का सर्वोच्च रूप मानी जाती हैं। यह मंदिर तमिलनाडु की तीन प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है — अन्य दो हैं मीनाक्षी मंदिर (मदुरै) और अखिलांडेश्वरी मंदिर (तिरुवनैकवल)

मंदिर का भव्य राजगोपुरम, पद्मासन मुद्रा में विराजमान माँ कामाक्षी की मूर्ति, और श्रीचक्र प्रतिष्ठान से सुसज्जित गर्भगृह। दक्षिण भारत की शाक्त परंपरा, द्रविड़ स्थापत्य और आध्यात्मिक गरिमा को जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं।

🌺 पौराणिक महत्ता और देवी का स्वरूप

Kanchi Kamakshi Temple

  • “कामाक्षी” शब्द संस्कृत के “काम” (इच्छा) और “अक्षी” (नेत्र) से मिलकर बना है — अर्थात् वह देवी जिनकी दृष्टि से इच्छाएँ पूर्ण होती हैं
  • देवी यहाँ पद्मासन मुद्रा में विराजमान हैं, उनके चारों हाथों में पाश, अंकुश, कमल और गन्ने का धनुष है
  • मान्यता है कि देवी ने यहाँ माँ पार्वती के उग्र रूप से शांत रूप में परिवर्तन किया — जिसे शांत स्वरूपिणी कहा जाता है
  • मंदिर में प्रतिष्ठित श्रीचक्र को स्वयं आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था

🛕 मंदिर का इतिहास और स्थापत्य

  • मंदिर का निर्माण संभवतः 5वीं–8वीं शताब्दी में पल्लव राजाओं द्वारा प्रारंभ किया गया था, और बाद में चोल वंश ने इसे विस्तार दिया
  • मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली में है — जिसमें भव्य राजगोपुरम, स्तंभयुक्त मंडप, और पुष्करिणी (जलकुंड) शामिल हैं
  • गर्भगृह के चारों ओर शिव, विष्णु और ब्रह्मा की मूर्तियाँ विराजमान हैं — जो देवी की त्रिमूर्ति शक्ति को दर्शाती हैं

Read More : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: काल के अधिपति शिव का जागृत धाम और मोक्ष का द्वार

🔱 आध्यात्मिक परंपरा और उत्सव

Kanchi Kamakshi Temple

  • मंदिर कांची कामकोटी पीठ का आध्यात्मिक केंद्र है
  • यहाँ प्रतिवर्ष नवरात्रि, वसंतोत्सव, और कामाक्षी ब्रह्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं
  • देवी की मूर्ति को उग्र रूप से शांत रूप में परिवर्तित करने की कथा के अनुसार, हर उत्सव में देवी आदि शंकराचार्य के मंदिर से अनुमति लेकर ही बाहर निकलती हैं