भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के मीडिया के सामने छलके आंसुओं के बाद आंदोलन को नया मोड मिला है। पश्चिम उत्तर प्रदेश की किसान राजनीति में टिकैत का बड़े नेता हैं। टिकैत पश्चिम यूपी में जाट समुदाय के भी नेता हैं। इन दोनों तत्वों के कारण यूपी की राजनीति में राकेश टिकैत की अनदेखी कोई दल नहीं करना चाहता है। 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से किसान आंदोलन कमजोर पड़ता दिख रहा था। लेकिन टिकैत के आंसू अब राजनीतिक हथियार बनने के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।
गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में राकेश टिकैत के रोने के बाद पूरी तस्वीर पलट गई है। इस पंचायत में हरियाणा और यूपी के 10 हजार किसानों की मौजूदगी सरकार के लिए उलटा पड़ रही है। किसान आंदोलन में जाट समुदाय का इस तरह से उतरना बीजेपी के लिए सियासी खतरे से कम नहीं है। टिकैत के आंसू अब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में क्या सियासी हथियार बनेंगे?
इस आंदोलन के दौरान यूपी की सत्ता में किसानों और जाट समुदाय से अच्छा समीकरण बनने के कयास लगाए जा रहे हैं। यूपी की 17 लोकसभा सीटों और 120 विधानसभा सीटों पर जाट वोट बैंक सीधा असर डालता है। गाजीपुर बॉर्डर से धरना स्थल खाली करने के यूपी सरकार ने जिस तरह से आदेश दिए। गुरुवार रात को पुलिस घेरे में आए राकेश टिकैत के रोने की खबर ने सारे पैंतरे पलट दिए और पुलिस को बेरंग लौटना पड़ा।