महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: काल के अधिपति शिव का जागृत धाम और मोक्ष का द्वार

गर्भगृह में दक्षिणमुखी स्वयंभू शिवलिंग
उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के महाकाल रूप को समर्पित है। यह मंदिर स्वयंभू दक्षिणमुखी शिवलिंग, भस्म आरती और उज्जैन की तांत्रिक परंपरा का प्रतीक है।

Mahakaleshwar Jyotirlinga Ujjain मध्य प्रदेश के प्राचीन नगर उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर शिव के महाकाल रूप को समर्पित है — जो काल (समय) और मृत्यु के अधिपति हैं। उज्जैन को “कालों का नगर” कहा जाता है, और महाकालेश्वर यहाँ की आत्मा हैं।

महाकालेश्वर की पूजा का मुख्य कारण उनकी स्वयंभू शक्ति, दक्षिणमुखी शिवलिंग, और भस्म आरती की अनूठी परंपरा है। यह शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ है (स्वयंभू) और अन्य ज्योतिर्लिंगों के विपरीत, यह दक्षिण दिशा की ओर स्थित है — जो मृत्यु की दिशा मानी जाती है। यही कारण है कि महाकालेश्वर को मृत्यु पर विजय देने वाला देवता माना जाता है।

Mahakaleshwar Jyotirlinga Ujjain

मंदिर का उल्लेख शिव पुराण, वराह पुराण, और स्कंद पुराण में मिलता है। मान्यता है कि जब उज्जैन पर राक्षस दुषण ने आक्रमण किया, तब शिव ने यहाँ ज्योति रूप में प्रकट होकर उसका वध किया और नगर की रक्षा की। वर्तमान मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में मराठा शासक राणोजी शिंदे द्वारा कराया गया था।

Read More: महा कालीका मंदिर (उज्जैन): माँ कालिका का जागृत शक्तिपीठ और तंत्र साधना का केंद्र

मंदिर की वास्तुकला भूमिजा और मराठा शैली का मिश्रण है — पाँच मंज़िला संरचना, विशाल प्रांगण, और गर्भगृह में स्थित शिवलिंग। मंदिर के ऊपर स्थित मंज़िलों में नागचंद्रेश्वर की मूर्ति है, जो केवल नाग पंचमी के दिन दर्शन के लिए खोली जाती है।

भस्म आरती की परंपरा

  • प्रतिदिन प्रातः 4 बजे होती है
  • शिवलिंग को चिता की भस्म से सजाया जाता है
  • यह आरती जीवन की क्षणभंगुरता और शिव की शाश्वतता का प्रतीक है
  • आरती में भाग लेने के लिए विशेष अनुमति और पारंपरिक वस्त्र आवश्यक होते हैं

महाकाल लोक कॉरिडोर

  • मंदिर परिसर का विस्तार, भव्य मूर्तियाँ, और सांस्कृतिक प्रदर्शनी शामिल
  • यह कॉरिडोर उज्जैन को एक वैश्विक आध्यात्मिक केंद्र के रूप में स्थापित करता है

Mahakaleshwar Jyotirlinga Ujjain

यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उज्जैन की तांत्रिक परंपरा, कुंभ मेले, और मोक्षदायिनी सप्तपुरी में से एक होने के कारण विशेष महत्व रखता है। हर दिन प्रातः 4 बजे होने वाली भस्म आरती में शिवलिंग को चिता भस्म से सजाया जाता है — जो जीवन की क्षणभंगुरता और शिव की शाश्वतता का प्रतीक है।