भाषा आधारित शिक्षा: मातृभाषा में पढ़ाई का महत्व

“मातृभाषा में पढ़ाई करते प्राथमिक स्कूल के बच्चे”

Mother Tongue Education India— शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि समझ विकसित करना है। और यह समझ तब सबसे प्रभावी होती है जब पढ़ाई मातृभाषा में हो। भारत जैसे बहुभाषी देश में मातृभाषा आधारित शिक्षा न केवल सीखने को सरल बनाती है, बल्कि बच्चों के आत्मविश्वास, अभिव्यक्ति और सांस्कृतिक जुड़ाव को भी मजबूत करती है। NEP 2020 ने भी प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा को प्राथमिकता दी है।

Mother Tongue Education India

शोध बताते हैं कि बच्चे जब अपनी पहली भाषा में पढ़ते हैं, तो वे तेज़ी से सीखते हैं, जटिल अवधारणाओं को बेहतर समझते हैं और रचनात्मकता में आगे रहते हैं। UNESCO की रिपोर्ट के अनुसार, मातृभाषा में पढ़ाई करने वाले बच्चों की ड्रॉपआउट दर कम होती है और वे स्कूल में अधिक सक्रिय रहते हैं। साथ ही, यह भाषा के प्रति सम्मान और सांस्कृतिक पहचान को भी बढ़ावा देती है।

भारत में हिंदी, बंगाली, तमिल, मराठी, तेलुगु, उर्दू जैसी भाषाओं में अब डिजिटल कंटेंट, पाठ्यपुस्तकें और ई-लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म उपलब्ध हो रहे हैं। NCERT और राज्य शिक्षा बोर्ड अब क्षेत्रीय भाषाओं में इंटरएक्टिव सामग्री विकसित कर रहे हैं। साथ ही, शिक्षकों को भी मातृभाषा आधारित शिक्षण के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है — जिससे कक्षा में संवाद अधिक प्रभावी हो सके।

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हालाँकि, मातृभाषा में शिक्षा के साथ कुछ चुनौतियाँ भी हैं — जैसे उच्च शिक्षा में अंग्रेज़ी का वर्चस्व, तकनीकी शब्दावली की कमी, और अभिभावकों की अंग्रेज़ी-प्राथमिकता सोच। इन चुनौतियों से निपटने के लिए अब द्विभाषिक शिक्षा मॉडल, अनुवाद टूल्स, और हाइब्रिड कंटेंट विकसित किए जा रहे हैं — जिससे छात्र मातृभाषा में सोचें और वैश्विक भाषा में संवाद कर सकें।

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निष्कर्षतः, मातृभाषा में शिक्षा केवल भाषा का सवाल नहीं, बल्कि समझ, आत्मसम्मान और समावेशिताका विषय है। जब बच्चे अपनी भाषा में सीखते हैं, तो वे न केवल बेहतर छात्र बनते हैं, बल्कि अधिक जागरूक और आत्मनिर्भर नागरिक भी। यही है शिक्षा का असली उद्देश्य — और मातृभाषा उसकी पहली सीढ़ी।