पति हरिभजन राम बरी, कोर्ट ने कहा—उकसावे का सबूत नहीं
राजस्थान हाई कोर्ट ने आरएसी प्रथम बटालियन की महिला कांस्टेबल गीता देवी के आत्मदाह मामले में आरोपी पति हरिभजन राम को बरी कर दिया। जस्टिस संदीप शाह की अदालत ने कहा कि पुलिस जांच आत्महत्या के लिए उकसावा (धारा 306) सिद्ध करने में विफल रही और इस आधार पर ट्रायल चलाना न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग होता।
मामला 7 सितंबर 2018 की रात का है। मंडोर थाने में दर्ज एफआईआर के अनुसार, गीता देवी ने बयान में पति द्वारा मानसिक प्रताड़ना और 5 सितंबर को कोर्ट परिसर में अपमान का जिक्र किया था। उन्होंने 7 सितंबर को खुद पर पेट्रोल उंडेलकर आग लगा ली थी और 20 सितंबर 2018 को इलाज के दौरान उनकी मौत हुई। परिवार के सदस्यों ने भी कोर्ट में हुई असहज पूछताछ के बाद बढ़े तनाव का उल्लेख किया। दोनों 2006-07 से अलग रह रहे थे।
कोर्ट ने जांच की 7 प्रमुख खामियों पर प्रकाश डाला—आईओ का मनमाना बदलाव और बाद में 306 जोड़ना, दुष्प्रेरणा के कानूनी तत्वों को न समझना, वकील पवन रांकावत सहित स्वतंत्र गवाहों के बयानों की अनदेखी, टाइमलाइन/सीधे संपर्क का अभाव, और इस निष्कर्ष तक पहुँचना कि केवल अलग रहना, दूसरी शादी या सामान्य विवाद 306 के तत्व नहीं बनाते।
धारा 306 और 107 आईपीसी की व्याख्या करते हुए कोर्ट ने कहा कि दुष्प्रेरणा सिद्ध करने हेतु स्पष्ट उकसावा या ऐसा जानबूझा कृत्य दिखना चाहिए जो आत्महत्या को बढ़ावा दे; गुस्से में कहे शब्द/सामान्य झगड़े इसके दायरे में नहीं आते।
