‘प्रेमानंद एक अक्षर संस्कृत बोलकर दिखाएं’
रामभद्राचार्य के बयान पर ब्रज के संतों का विरोध
मथुरा/चित्रकूट। तुलसी पीठाधीश्वर पद्म विभूषण जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज द्वारा संत प्रेमानंद महाराज को लेकर दिया गया बयान विवादों में आ गया है। रामभद्राचार्य ने कहा था कि यदि प्रेमानंद महाराज में चमत्कार है तो वे उनके सामने एक अक्षर संस्कृत बोलकर दिखाएं या किसी श्लोक का अर्थ समझाएं। उन्होंने प्रेमानंद को ‘बालक समान’ बताया और उनकी लोकप्रियता को क्षणभंगुर करार दिया। इस बयान के बाद ब्रज के संतों ने कड़ी आपत्ति जताई है और रामभद्राचार्य पर ज्ञान के अहंकार का आरोप लगाया है।
विवाद क्यों?
रामभद्राचार्य का यह बयान समाज में “संत बनाम संत” की बहस खड़ा कर रहा है। एक ओर प्रेमानंद महाराज को करोड़ों भक्तों की आस्था प्राप्त है, वहीं रामभद्राचार्य विद्वता और ज्ञान के लिए जाने जाते हैं। अब सवाल यह है कि संतों की यह बयानबाजी भक्ति और समाज के लिए किस हद तक सही है।
संतों की नाराजगी और प्रतिक्रियाएं
‘भक्ति का भाषा से कोई लेना-देना नहीं’
साधक मधुसूदन दास ने कहा, “भक्ति भाषा पर निर्भर नहीं करती। कोई चीनी में भक्ति करे या फ्रेंच में, भक्ति केवल भाव से होती है। वृंदावन और काशी में दुनिया भर के लोग अपनी भाषा में भगवान का स्मरण करते हैं। संस्कृत का ज्ञान भक्ति का आधार नहीं है।”
‘प्रेमानंद महाराज दिव्य संत’
संत अभिदास महाराज ने टिप्पणी की, “प्रेमानंद महाराज कलयुग के दिव्य संत हैं। उन्होंने लाखों युवाओं को गलत रास्तों से हटाकर सद्मार्ग की ओर अग्रसर किया है। ऐसे संत के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करना अनुचित है। ज्ञान के अहंकार में ऐसा कहना रामभद्राचार्य को शोभा नहीं देता।”
‘इतना घमंड रावण को भी नहीं था’
दिनेश फलाहारी ने कहा, “रामभद्राचार्य को अपने ज्ञान का घमंड हो गया है, इतना तो रावण को भी नहीं था। प्रेमानंद महाराज राधा नाम की भक्ति में लीन रहते हैं। उनके पास कोई संपत्ति नहीं है, जबकि अन्य संतों के पास बड़ी संपत्तियां हैं। प्रेमानंदजी का रोम-रोम राधारानी को समर्पित है।”
‘प्रेमानंद युवाओं की धड़कन’
धर्माचार्य अनमोल शास्त्री ने कहा, “प्रेमानंद महाराज युवाओं के दिल की धड़कन हैं। उन्होंने हजारों युवाओं को भक्ति की ओर प्रेरित किया है। संस्कृत की चुनौती देना अहंकार का प्रतीक है। इतना घमंड संत को शोभा नहीं देता।”
‘संतों की परंपरा शांत स्वरूप है’
प्रख्यात धर्माचार्य आचार्य रामविलास चतुर्वेदी ने कहा, “किसी को कमजोर बताना संतों की परंपरा नहीं है। संतों का काम समाज को जोड़ना, ध्यान और साधना की ओर ले जाना है। आज संत समाज में श्रेष्ठता की होड़ मच गई है, जबकि संत परंपरा हमेशा शांति और समाज सेवा पर आधारित रही है।”
‘प्रेमानंद की ख्याति पूरे विश्व में’
साध्वी दिव्या किशोरी ने कहा, “प्रेमानंद महाराज की ख्याति विश्वभर में फैली हुई है। उनके भक्त वृंदावन से लेकर विदेशों तक हैं। उनके बारे में ऐसी टिप्पणी करना संत परंपरा के विपरीत है। रामभद्राचार्य जैसे विद्वान संत से ऐसी बातें सुनना दुखद है। इससे समाज में गलत संदेश जाता है।”
रामभद्राचार्य के बयान ने संत समाज में ‘संत बनाम संत’ की बहस छेड़ दी है। एक ओर प्रेमानंद महाराज को करोड़ों भक्तों का समर्थन और आस्था प्राप्त है, वहीं रामभद्राचार्य विद्वता और ज्ञान के लिए जाने जाते हैं। लेकिन अब सवाल उठ रहा है कि क्या संतों के बीच यह टकराव भक्ति और समाज के लिए उचित है, या फिर यह केवल श्रेष्ठता साबित करने की होड़ का परिणाम है।
