रणछोड़ राय मंदिर: त्याग, भक्ति और कृष्ण की करुणा का प्रतीक

काले पत्थर से बनी रणछोड़ राय जी की मूर्ति सोने के आभूषणों में
गुजरात के डाकोर में स्थित रणछोड़ राय मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के रणछोड़ रूप को समर्पित है। यह मंदिर त्याग, भक्ति और करुणा का प्रतीक है, जहाँ भगवान स्वयं अपने भक्त के आग्रह पर द्वारका से आए।

Ranchhod Rai Temple गुजरात के खेड़ा ज़िले के डाकोर नगर में स्थित रणछोड़ राय मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के एक विशेष रूप “रणछोड़” को समर्पित है। “रणछोड़” शब्द संस्कृत के “रण” (युद्ध) और “छोड़” (त्याग) से मिलकर बना है — अर्थात् वह जिसने युद्ध का त्याग किया। यह नाम भगवान कृष्ण को तब मिला जब उन्होंने मथुरा पर बार-बार आक्रमण कर रहे जरासंध से अपने भक्तों की रक्षा हेतु युद्धभूमि छोड़ दी और द्वारका की स्थापना की।

रणछोड़ राय की पूजा का मुख्य कारण उनकी करुणा, रणनीति और भक्तवत्सलता है। यह रूप दर्शाता है कि भगवान केवल युद्ध में विजेता नहीं, बल्कि शांति और रक्षण के मार्गदर्शक भी हैं। डाकोर में स्थित यह मंदिर भगवान कृष्ण के उसी रूप को समर्पित है, जहाँ वे अपने भक्त विजय आनंद बोधन के आग्रह पर द्वारका से स्वयं चलकर आए थे।

Ranchhod Rai Temple

मंदिर का इतिहास 18वीं शताब्दी से जुड़ा है, जब गोपलराव जगन्नाथ तांबवेकर नामक भक्त को स्वप्न में भगवान ने दर्शन दिए और मंदिर निर्माण का निर्देश दिया। मंदिर की मूर्ति मूलतः द्वारका में पूजित थी, जिसे आक्रमणों से बचाने के लिए डाकोर लाया गया। यह मूर्ति काले पत्थर की बनी है और सोने के आभूषणों से सुसज्जित रहती है।

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मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक गुजराती शैली में निर्मित है — जिसमें चार प्रवेश द्वार, विशाल सभा मंडप, रंगीन चित्रों से सजी दीवारें, और सुंदर नक्काशीदार स्तंभ हैं। गर्भगृह में भगवान रणछोड़ राय की मूर्ति के साथ रुक्मिणी जी की प्रतिमा भी विराजमान है।

Ranchhod Rai Temple

यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह गुजरात की वैष्णव परंपरा, भक्ति आंदोलन, और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक भी है। यहाँ हर वर्ष जन्माष्टमी, फाल्गुन पूर्णिमा, और अनंत चतुर्दशी जैसे पर्वों पर लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।