
School Dropout Problem India: भारत में शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित किए जाने के बावजूद लाखों बच्चे हर साल स्कूल छोड़ देते हैं। स्कूल ड्रॉपआउट की समस्या विशेष रूप से ग्रामीण, आदिवासी और शहरी गरीब क्षेत्रों में गंभीर रूप ले चुकी है। यह न केवल बच्चों के भविष्य को प्रभावित करती है, बल्कि देश के सामाजिक और आर्थिक विकास को भी बाधित करती है।
School Dropout Problem India
ड्रॉपआउट के पीछे कई कारण हैं — आर्थिक तंगी, परिवार की जिम्मेदारियाँ, लिंग भेदभाव, शिक्षकों की अनुपस्थिति, और स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी। लड़कियों के मामले में बाल विवाह और सुरक्षा की चिंता भी प्रमुख कारण हैं। साथ ही, कई बच्चे पढ़ाई में रुचि न होने या पाठ्यक्रम को कठिन मानने के कारण भी स्कूल छोड़ देते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या का समाधान केवल स्कूल खोलने से नहीं, बल्कि समावेशी और प्रेरक शिक्षा प्रणाली से संभव है। NEP 2020 ने ड्रॉपआउट दर को कम करने के लिए “फाउंडेशनल लिटरेसी”, “फ्लेक्सिबल लर्निंग”, और “स्कूल से पुनः जुड़ने के कार्यक्रम” जैसे उपाय सुझाए हैं। साथ ही, सरकारी योजनाएँ जैसे समग्र शिक्षा अभियान, बालिका शिक्षा प्रोत्साहन योजना और मिड-डे मील भी इस दिशा में सहायक हैं।
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समाधान के लिए ज़रूरी है कि स्थानीय समुदाय, अभिभावक और शिक्षक मिलकर काम करें। स्कूलों में करियर काउंसलिंग, स्किल-बेस्ड लर्निंग और एक्स्ट्रा करिकुलर गतिविधियाँ बच्चों को जोड़ने में मदद करती हैं। डिजिटल शिक्षा और मोबाइल लर्निंग भी उन बच्चों तक पहुँच बना रही है जो नियमित स्कूल नहीं जा सकते। साथ ही, लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिकता देना सामाजिक बदलाव की दिशा में अहम कदम है।
School Dropout Problem India
निष्कर्षतः, स्कूल ड्रॉपआउट की समस्या केवल शैक्षिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक है। जब तक हर बच्चा स्कूल में नहीं रहेगा, तब तक भारत का भविष्य अधूरा रहेगा। ज़रूरत है एक समन्वित प्रयास की — जहाँ नीति, समाज और तकनीक मिलकर शिक्षा को हर बच्चे तक पहुँचाएँ और अधूरी शिक्षा को पूर्णता की ओर ले जाएँ।