सोमनाथ मंदिर: शिव के प्रथम ज्योतिर्लिंग की अमर आस्था और पुनर्जन्म की गाथा

गर्भगृह में विराजमान ज्योतिर्लिंग
गुजरात के प्रभास पाटन में स्थित सोमनाथ मंदिर भगवान शिव के प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजित है। यह मंदिर आस्था, पुनर्निर्माण और चूलुक्य शैली की वास्तुकला का प्रतीक है, जहाँ चंद्रदेव ने तपस्या की थी।

Somnath Temple Gujarat गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित सोमनाथ मंदिर भगवान शिव के प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजित है। यह मंदिर हिंदू धर्म के बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे प्राचीन और पवित्र माना जाता है। “सोमनाथ” का अर्थ है “चंद्रमा के स्वामी”, और यह मंदिर चंद्रदेव की तपस्या से जुड़ी पौराणिक कथा का केंद्र है।

सोमनाथ की पूजा का मुख्य कारण भगवान शिव की मोक्षदायक शक्ति, अनंत ज्योति रूप, और संरक्षक स्वरूप है। मान्यता है कि चंद्रदेव ने दक्ष प्रजापति के श्राप से मुक्ति पाने के लिए यहाँ कठोर तप किया था, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया और इस स्थल को ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित किया।

Somnath Temple Gujarat

मंदिर का इतिहास अत्यंत संघर्षपूर्ण और पुनर्निर्माण की मिसाल है। इसे महमूद गज़नवी ने 1026 ई. में ध्वस्त किया था, जिसके बाद इसे कई बार फिर से बनाया गया — कुल मिलाकर 6 बार नष्ट और 7वीं बार पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान मंदिर का निर्माण 1951 में सरदार वल्लभभाई पटेल की पहल पर हुआ, जिसे प्रभाशंकर सोमपुरा ने चूलुक्य शैली में डिज़ाइन किया।

Read More : श्री काशी अन्नपूर्णा मंदिर: वाराणसी की अन्नदाता देवी और शिव-पार्वती की करुणा का प्रतीक

मंदिर की वास्तुकला मारू-गुर्जर शैली में निर्मित है — पीले बलुआ पत्थर से बनी दीवारें, 155 फीट ऊँचा शिखर, स्वर्ण कलश और निरंतर लहराता ध्वज। मंदिर परिसर में स्थित बाण स्तंभ दर्शाता है कि यह स्थल भारत के दक्षिणी छोर से सीधे अंटार्कटिका तक भूमि का पहला बिंदु है।

Somnath Temple Gujarat

यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की आस्था, पुनर्जन्म और सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक भी है। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं, विशेषकर महाशिवरात्रि, श्रावण मास, और सोमवार के दिन।