त्रिपुरा सुंदरी मंदिर: माताबाड़ी में स्थित शक्तिपीठ, सौंदर्य और शक्ति का संगम

गर्भगृह में विराजमान त्रिपुरा सुंदरी और छोटी माँ की मूर्तियाँ
त्रिपुरा के उदयपुर में स्थित त्रिपुरा सुंदरी मंदिर देवी सती के दक्षिण चरण के शक्तिपीठ के रूप में पूजित है। यह मंदिर माताबाड़ी के नाम से प्रसिद्ध है और बंगाली शैली में निर्मित है, जहाँ देवी त्रिपुरेश्वरी की दो मूर्तियाँ विराजमान हैं।

Tripura Sundari Temple त्रिपुरा राज्य के गोमती ज़िले के उदयपुर नगर में स्थित त्रिपुरा सुंदरी मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर देवी त्रिपुरेश्वरी को समर्पित है, जिन्हें त्रिपुरा सुंदरी — “तीनों लोकों की सबसे सुंदर” — के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर स्थानीय रूप से माताबाड़ी के नाम से प्रसिद्ध है।

त्रिपुरा सुंदरी की पूजा का मुख्य कारण उनकी सर्वशक्तिमान रूप, सौंदर्य, और माँ सती के अंगों की उपस्थिति है। मान्यता है कि जब भगवान शिव ने सती के शरीर को लेकर तांडव किया, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित किया। जहाँ-जहाँ अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठ बने। उदयपुर में सती का दक्षिण चरण (दायाँ पैर) गिरा था।

Tripura Sundari Temple

मंदिर की स्थापना 1501 ई. में महाराजा धन्य माणिक्य ने की थी। उन्हें स्वप्न में देवी ने दर्शन देकर इस स्थान पर अपनी मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया। पहले यहाँ विष्णु मंदिर था, लेकिन राजा ने समझा कि विष्णु और शक्ति एक ही ब्रह्म के रूप हैं, और देवी की मूर्ति यहाँ स्थापित की गई।

मंदिर की वास्तुकला बंगाली एक-रत्न शैली में निर्मित है — एक वर्गाकार गर्भगृह, तीन-स्तरीय छत और शिखर पर कलश। मंदिर एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है, जिसका आकार कछुए की पीठ (कूर्मप्रिष्ठाकृति) जैसा है — जो शाक्त परंपरा में सबसे पवित्र स्थल माना जाता है।

Read More : रणछोड़ राय मंदिर: त्याग, भक्ति और कृष्ण की करुणा का प्रतीक

गर्भगृह में दो मूर्तियाँ हैं — एक 5 फीट ऊँची त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति, और दूसरी 2 फीट ऊँची छोटी माँ (छोटो मा) की मूर्ति, जो देवी चंडी का रूप है। छोटी माँ की मूर्ति को त्रिपुरा के राजाओं द्वारा युद्ध और शिकार में साथ ले जाया जाता था।

Tripura Sundari Temple

यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह त्रिपुरा राज्य की संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक भी है। यहाँ हर वर्ष दीपावली पर विशाल मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं।