कृष्णा सर्किट के अंतर्गत बने म्यूजियम ऑफ ग्रेस का उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी ने किया अवलोकन

जयपुर। उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी ने रविवार को भारत सरकार के केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा 23 करोड़ 42 लाख रूपए की लागत से कृष्णा सर्किट के अंतर्गत निर्मित म्यूजियम ऑफ ग्रेस का अवलोकन किया। इस दौरान नाथद्वारा विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़, जिलाध्यक्ष जगदीश पालीवाल, समाजसेवी माधव जाट आदि मौजूद रहे। 

अवलोकन के दौरान पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के इतिहास और माहात्म्य आदि को विस्तृत रूप से भव्य चित्रों, श्रव्य एवं दृश्य माध्यमों से प्रस्तुत किया गया। 

उप मुख्यमंत्री ने कहा कि इस म्यूजियम का अधिकाधिक प्रचार प्रसार करें ताकि आमजन यहां आकर गौरवमयी इतिहास को समझ सकें। 

प्रेज़ेंटेशन में बताया गया कि पुष्टिमार्ग की विरासत को प्रदर्शित करते हुए आगंतुकों को एक अनुभवात्मक और गहन यात्रा पर ले जाना हमारा प्रमुख उद्देश्य है। हम उन श्रद्धालुओं के भक्ति अनुभव को और समृद्ध करना चाहते हैं, जो प्रतिदिन नाथद्वारा आकर आध्यात्मिक पवित्रता और भगवान श्रीकृष्ण के कृपालु हाथों की तलाश करते हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संग्रहालय के हॉल सावधानीपूर्वक तैयार किए गए स्थिर और डिजिटल प्रतिष्ठानों के माध्यम से आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। इन प्रतिष्ठानों में पुष्टिमार्ग की कथा को उसकी स्थापना से लेकर वल्लभ-कुल, सेवा और उत्सवों तक क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है।

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ये प्रतिष्ठान श्रीनाथजी की सेवा की विशद उदारता को मूर्त रूप देते हैं और दर्शकों को श्री वल्लभाचार्य की पुष्टिमार्गीय शिक्षाओं से मिलने वाले परमानंद और उल्लास में लीन करते हैं। साथ ही, पर्यटन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि हमारा लक्ष्य विशेष रूप से युवा पीढ़ी तक पहुँचना है, उनकी संवेदनशीलता को आकर्षित करना और आध्यात्मिक दर्शन में अर्थ की उनकी खोज का उत्तर देना।

पुष्टिमार्ग, या “कृपा का मार्ग“, 12वीं से 16वीं शताब्दी के बीच वैष्णव धर्म के पाँच महान संप्रदायों में से एक के रूप में उभरा और भक्ति पुनर्जागरण का सूत्रपात किया। इस क्रांतिकारी आंदोलन की स्थापना श्री वल्लभाचार्य ने की थी, और आज लाखों अनुयायी, विशेष रूप से उत्तर और पश्चिम भारत से, इस परंपरा का पालन करते हैं।

इस संप्रदाय की विशेषता, इसका दार्शनिक आधार— शुद्धाद्वैत दर्शन या शुद्ध अद्वैतवाद—है, जो इसे वैष्णव परंपरा में अद्वितीय बनाता है। पुष्टिमार्ग ही परंपरा है जो कृष्ण को सर्वस्व और सर्वस्व को कृष्ण के रूप में स्वीकार करती है। यह शुद्ध अद्वैतवादी मार्ग एक सकारात्मक भक्तिमय विश्वदृष्टि प्रस्तुत करता है, जिसमें संपूर्ण सृष्टि को ईश्वर की पूर्ण अभिव्यक्ति मानकर उसका सम्मान और स्तुति की जाती है। भक्तजन श्रीकृष्ण की उपस्थिति के अमृत में लीन होकर, अपनी विभिन्न परिष्कृत संवेदनाओं के साथ उनके सार का उत्सव मनाते हैं। यह उत्सव अनुभूति के प्रत्येक स्तर का आंतरिक गर्भगृह है, जो अनुष्ठानों के स्वामी श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं का अविभाज्य अंग है।

अंततः, पुष्टिमार्ग एक अप्रतिबंधित आध्यात्मिक मार्ग है, जहाँ श्री वल्लभाचार्य की शिक्षाओं के अनुसार साधन और फल को एक ही रूप में देखा जाता है। यही इस मार्ग की पवित्रता और सार्वभौमिकता है, जो इसे आज भी प्रासंगिक और जीवन्त बनाती है।