पढ़ाई और मानसिक स्वास्थ्य का संबंध: संतुलन से ही मिलती है सफलता

“स्कूल में मानसिक स्वास्थ्य सत्र”

Mental Health in Education India: आज की प्रतिस्पर्धात्मक शिक्षा प्रणाली में छात्रों पर पढ़ाई का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। परीक्षा, कोचिंग, करियर की चिंता और सामाजिक अपेक्षाएँ — ये सभी मिलकर मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। ऐसे में यह समझना ज़रूरी है कि पढ़ाई और मानसिक स्वास्थ्य का गहरा संबंध है, और संतुलन बनाए रखना ही दीर्घकालिक सफलता की कुंजी है।

Mental Health in Education India

शोध बताते हैं कि अत्यधिक पढ़ाई या अनियमित दिनचर्या से छात्रों में तनाव, चिंता, नींद की कमी और आत्म-संदेह जैसी समस्याएँ बढ़ती हैं। WHO की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर पाँचवाँ किशोर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी किसी न किसी चुनौती का सामना कर रहा है। साथ ही, NEP 2020 ने भी स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की बात कही है — जिसमें काउंसलिंग, वैल्यू एजुकेशन और भावनात्मक बुद्धिमत्ता को शामिल किया गया है।

पढ़ाई का सकारात्मक प्रभाव तब होता है जब छात्र को समर्थन, प्रेरणा और लचीलापन मिले। स्कूलों में अब “हैप्पीनेस क्लास”, “मेंटल हेल्थ सेशन” और “माइंडफुलनेस एक्टिविटीज़” शुरू की जा रही हैं। साथ ही, अभिभावकों और शिक्षकों को भी यह समझना होगा कि हर छात्र की सीखने की गति और शैली अलग होती है — और उसे उसी के अनुसार मार्गदर्शन देना चाहिए।

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डिजिटल शिक्षा के दौर में स्क्रीन थकावट, सोशल मीडिया का दबाव और अकेलापन भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि छात्र समय प्रबंधन, शारीरिक गतिविधि, और सकारात्मक संवाद को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। योग, ध्यान, संगीत और कला जैसी गतिविधियाँ मानसिक संतुलन बनाए रखने में सहायक होती हैं।

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निष्कर्षतः, पढ़ाई और मानसिक स्वास्थ्य एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। जब छात्र मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं, तभी वे पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि एक संतुलित, आत्मविश्वासी और खुशहाल जीवन की दिशा में ले जाना है — और यही है आज की शिक्षा की असली ज़िम्मेदारी।