
Digital Safety for Children: आज के बच्चे इंटरनेट के साथ बड़े हो रहे हैं — ऑनलाइन क्लासेस, गेमिंग, सोशल मीडिया, यूट्यूब और चैटिंग उनके रोज़मर्रा का हिस्सा बन चुके हैं। लेकिन इस डिजिटल स्वतंत्रता के साथ आते हैं खतरनाक जोखिम: साइबरबुलिंग, ऑनलाइन शोषण, डेटा चोरी, स्क्रीन एडिक्शन और गलत कंटेंट तक पहुंच। ऐसे में बच्चों को डिजिटल दुनिया में सुरक्षित रखना अब माता-पिता, शिक्षकों और समाज की सामूहिक ज़िम्मेदारी बन गई है।
2025 में भारत में 10 से 17 वर्ष के बच्चों में इंटरनेट उपयोग 82% तक पहुँच चुका है। लेकिन उनमें से अधिकांश को ऑनलाइन खतरे, प्राइवेसी और डिजिटल एथिक्स की जानकारी नहीं है। इसलिए अब ज़रूरी है कि हम उन्हें साइबर सुरक्षा, डिजिटल व्यवहार और तकनीकी सीमाओं के बारे में जागरूक करें।
🧒 बच्चों की डिजिटल सुरक्षा के लिए ज़रूरी कदम
Digital Safety for Children
- पैरेंटल कंट्रोल टूल्स: स्क्रीन टाइम, ऐप एक्सेस और कंटेंट फ़िल्टरिंग
- ऑनलाइन बातचीत की निगरानी: चैट्स, गेमिंग कम्युनिटी और सोशल मीडिया पर सतर्कता
- साइबरबुलिंग से बचाव: बच्चों को बताएं कि कैसे रिपोर्ट करें और मदद लें
- डिजिटल एथिक्स की शिक्षा: क्या शेयर करना सुरक्षित है, क्या नहीं
- सुरक्षित पासवर्ड और 2FA: बच्चों के अकाउंट्स में सुरक्षा उपाय लागू करें
- ओपन कम्युनिकेशन: बच्चों से बात करें, डराएं नहीं — भरोसा बनाएं
Read More: एआई के युग में डेटा गोपनीयता: कितनी सुरक्षित है आपकी जानकारी?
🧠 स्कूलों और समाज की भूमिका
Digital Safety for Children
अब स्कूलों में डिजिटल लिटरेसी और साइबर हाइजीन को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा रहा है। NGOs और सरकारी संस्थाएँ भी ऑनलाइन सेफ्टी वर्कशॉप्स, हेल्पलाइन और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म्स चला रही हैं। साथ ही, माता-पिता को भी तकनीकी जानकारी और भावनात्मक समझ की ज़रूरत है — ताकि वे बच्चों के डिजिटल जीवन को समझ सकें।