सनातन धर्म के पर्व: इतिहास, आस्था और जीवन दर्शन

“नवरात्रि में देवी की पूजा करते श्रद्धालु”

Sanatan Festival History: भारत की सांस्कृतिक विरासत में सनातन धर्म के पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि जीवन के विविध पक्षों को संतुलित करने वाले आध्यात्मिक और सामाजिक साधन हैं। वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में वर्णित ये पर्व प्रकृति, ऋतु और मानव जीवन के साथ गहरे रूप से जुड़े हैं।

📜 प्रमुख पर्व और उनका ऐतिहासिक महत्व

Sanatan Festival History

  • दीपावली: त्रेता युग में श्रीराम के अयोध्या लौटने पर दीप जलाकर स्वागत किया गया। यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।
  • होली: भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु नरसिंह अवतार और होलिका दहन की कथा इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देती है।
  • नवरात्रि: देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध की स्मृति में मनाया जाता है। यह शक्ति, साधना और आत्मबल का पर्व है।
  • रक्षाबंधन: द्रौपदी और श्रीकृष्ण की कथा से जुड़ा यह पर्व भाई-बहन के प्रेम और रक्षा का प्रतीक है।
  • मकर संक्रांति: सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व, जो वैदिक काल से जुड़ा है और दान-पुण्य व ऊर्जा के संतुलन का संदेश देता है।

🧘‍♂️ आज के दौर में प्रासंगिकता

Sanatan Festival History

इन पर्वों के माध्यम से समाज में नैतिकता, सहिष्णुता और सामूहिकता की भावना विकसित होती है। आधुनिक जीवन की भागदौड़ में ये पर्व आत्मचिंतन, पारिवारिक जुड़ाव और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अवसर प्रदान करते हैं। दीपावली में पर्यावरण जागरूकता, होली में जल संरक्षण और नवरात्रि में स्वास्थ्यवर्धक उपवास जैसे पहलू अब सामाजिक सुधार से भी जुड़ चुके हैं।

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शहरों से लेकर गांवों तक, इन पर्वों का उत्सव न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था, हस्तशिल्प और पर्यटन को भी बढ़ावा देता है।