सुंदर आचरण ही हमारी पहचान: सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की राजस्थान मानव कल्याण यात्रा 26–30 नवंबर तक

कोटा। संत निरंकारी मिशन द्वारा प्रदेशभर में आध्यात्मिक जागृति और मानव कल्याण के उद्देश्य से आयोजित पांच दिवसीय राजस्थान मानव कल्याण यात्रा 26 नवंबर से 30 नवंबर तक आयोजित की जाएगी। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की छत्रछाया में होने वाले इस भव्य कार्यक्रम में हजारों श्रद्धालुओं के शामिल होने की संभावना है।

कोटा के गुमानपुरा स्थित संत निरंकारी सत्संग भवन में आयोजित सत्संग कार्यक्रम में जोनल इंचार्ज संत बृजराज सिंह यादव ने जानकारी देते हुए बताया कि सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के नेतृत्व में प्रदेश के विभिन्न जिलों में विशाल निरंकारी संत समागम आयोजित किए जाएंगे।

समागम कार्यक्रम का विस्तृत शेड्यूल

  • 26 नवंबर — सीकर
  • 27 नवंबर — बीकानेर
  • 28 नवंबर — बाड़मेर
  • 29 नवंबर — ब्यावर
  • 30 नवंबर — जयपुर

सभी समागम बड़े मैदानों में आयोजित होंगे, जिनमें कोटा सहित प्रदेशभर से भक्तजन बड़ी संख्या में शामिल होंगे।

संत समागम से जीवन में ऊर्जा और सकारात्मकता—संत बृजराज सिंह यादव

जोनल इंचार्ज ने कहा कि संत समागम की महिमा अत्यंत अपरंपार है। सतगुरु के दर्शन और संत महापुरुषों का सान्निध्य जीवन में ऊर्जा, विवेक और सकारात्मकता प्रदान करता है। उन्होंने बताया कि “संत समागम में समय निकालकर अवश्य जाना चाहिए, क्योंकि इससे आचरण, विचार और व्यवहार में निखार आता है तथा मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।”

ज्ञान प्रचारक डॉ. यशपाल सिंह के प्रवचन—हर दिल में प्रभु निरंकार का नूर

ज्ञान प्रचारक संत डॉ. यशपाल सिंह ने भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि मानव जीवन ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार है और इसी मानव योनि में प्रभु निरंकार की भक्ति संभव है। उन्होंने प्रेम, संवेदना और सुंदर आचरण को जीवन का मूल बताया।

उन्होंने कहा- “नहीं चाहिए दिल दुखाना किसी का, क्योंकि हर दिल में प्रभु निरंकार का नूर है।”

उन्होंने आगे कहा कि ब्रह्मज्ञान मिलने के बाद यह समझ आता है कि मनुष्य मात्र कठपुतली है और करने वाला स्वयं प्रभु निरंकार है। तन, मन और धन ईश्वर की देन हैं, इसलिए अहंकार, क्रोध और अभिमान का स्थान जीवन में नहीं होना चाहिए।

आचरण सर्वोच्च भक्ति—सदाचार से मिलता है सुकून

डॉ. सिंह ने बताया कि सुंदर आचरण, मधुर व्यवहार और शुद्ध चरित्र ही सच्ची पूजा है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास तभी संभव है जब उसके व्यवहार में मधुरता और जीवन में सदाचरण शामिल हो। यह न केवल मन को शांति देता है, बल्कि समाज में सम्मान भी बढ़ाता है।