कुआं बना कब्र: श्रमिक के साथ प्रशासन की इच्छाशक्ति भी कुएं में दफन, कहा- मुआवजा दे देंगे, शव नहीं निकाल सकते

पाली। शिवगंज के मूपाराम मीणा की देह अब हमेशा के लिए कानपुरा के कुएं में ही दफन हो गई है। अधूरे संसाधनों के चलते प्रशासन शव को कुएं से नहीं निकाल पाया। ऐसे में अब कुएं को ही मृतक की कब्र मान लिया है। कानपुरा गांव में कुएं के पक्के निर्माण के दौरान मिट्टी धंसने से अंदर दबे शव को निकालने के लिए 5 दिन तक दिन के उजाले में प्रयास करने के बाद अब अफसरों ने हाथ खड़े कर लिए हैं। गुरुवार तक फटी आंखों से दिन-रात परिजन कुएं के पास ही बैठकर मूपाराम के अंतिम दर्शन व सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार के लिए ताकते रहे। अंत में प्रशासन ने हाथ खड़े करते हुए मृतक के परिजनों को सरकारी मुआवजा दिलाने का कहते हुए उनसे लिखित में रजामंदी करवा दी। मृतक के भाइयों का कहना है प्रशासन ही कुछ नहीं कर सकता तो हम क्या कर सकते हैं। बड़ा सवाल यह भी है कि कुआं निर्माण के लिए अनुमति थी या नहीं। इस तथ्य को भी खंगालने के अधिकारियों ने प्रयास नहीं किए। जानकारी के अनुसार कानपुरा के समीप ईश्वरसिंह पुत्र पाबूसिंह का कृषि कुआं है। गत 27 सितंबर को यहां पर कुएं का निर्माण करते वक्त मिट्टी ढहने से शिवगंज तहसील के जाेगापुरा गांव निवासी श्रमिक मूपाराम पुत्र केसाराम मीणा एवं गाेमाराम पुत्र देवाराम मीणा दोनों दब गए थे। इस दौरान गोमाराम तो रस्सी पकड़कर बाहर आ गया, मगर मूपाराम डोले में होने के कारण मिट्टी में दब गया। शव को बाहर निकालने के लिए प्रयास किए गए। एसडीआरएफ की टीम तथा भीलवाड़ा से एक्सपर्ट को बुलाया गया, मगर कामयाबी नहीं मिली। हैरत की बात तो यह है कि 5 दिन के ऑपरेशन के दौरान जमींदोज हुए एक इंसान को जिंदा या मृत बाहर निकालने के लिए कलेक्टर को माैके पर जाने की फुर्सत ही नहीं मिली। जबकि देश में जब भी इस तरह के मामले होते हैं, प्रशासन पूरे लाव-लश्कर के साथ मौजूद दिखता है।

अंतिम दर्शन की आस में रहा परिवार: पांच दिन तक मृतक का पूरा परिवार मूपाराम मीणा के अंतिम दर्शन व सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार के लिए बिलखता रहा, प्रशासन के शव निकालने में हाथ ऊंचे करने के बाद अब उनका धैर्य भी टूटा। परिवार वाले भी बेबस हाे गए, अब उनको आंसुओं और उसकी तस्वीर के अलावा मूपाराम की स्मृतियों के अलावा कुछ भी नहीं बचा। सुमेरपुर उपखंड के कानपुरा गांव स्थित इसी कुएं में मिट्‌टी ढहने से मूपाराम मीणा 27 सितंबर को दब गया था। प्रशासन की ओर से 5 दिन तक मूपाराम को निकालने के तमाम प्रयास करने के बाद भी शव नहीं मिला। शुक्रवार को प्रशासन ने शव तलाशने का काम रोक दिया और परिजनों को राज्य सरकार से मुआवजा दिलाने का आश्वासन देकर घर रवाना कर दिया।

बड़ा सवाल: 200 फीट गहरे बोरवेल से किसी काे निकाला जा सकता है तो 80 फीट गहरे कुएं से कैसे हार गया प्रशासन

देश के कई हिस्सों में खुले बोरवेल में गिरने से कई बच्चों काे बाहर निकाला गया। पांच से सात दिन के लंबे ऑपरेशन के बाद कई बच्चों को बचाया भी गया। तमिलनाडु के तिरची में बोरवेल में गिरे बच्चों को निकालने में 90 घंटे लगे। वहां के सीएम खुद भी रेस्क्यू टीम को लेकर पहुंचे थे। इसी प्रकार संगरूर के सुनम गांव में बच्चे के शव को 109 घंटे बाद निकाला गया। बताते हैं कि यह बोरवेल भी 200 फीट तक गहरा था। जबकि कानपुरा गांव में कुआं महज 70 से 80 फीट ही गहरा है, जिसमें से भी शव नहीं निकाल पाए।

इनकी मध्यस्थता के बाद बिना शव घर लौटे परिजन: पूर्व प्रधान हरिशंकर मेवाड़ा, केंद्रीय बालश्रम बाेर्ड पूर्व उपाध्यक्ष शिशुपालसिंह निंबाड़ा एवं पूर्व ब्लाॅक अध्यक्ष करणसिंह चाणाैद ने कुआं मालिक, प्रशासन एवं मृतक के परिजनों में मध्यस्थता कर परिजनों कोे बिना शव लिए ही लौटने के लिए राजी कर दिया। इन नेताओं व प्रशासन ने राज्य सरकार से आर्थिक सहायता दिलवाने का आश्वासन भी दिया।

अफसरों ने हाथ खड़े किए, अब हम क्या करें: मृतक का भाई

जब प्रशासन ही कुछ नहीं कर सका तो हम अब आगे क्या करें। हमारे पास मशीनें तो हैं नहीं। मुआवजा दिलाने के लिए कहा गया है। अधिकारियों ने भी कह दिया कि अब शव निकालना संभव नहीं है। हम भी निरूपाय हैं। -गेनाराम मीणा, मृतक का भाई व आरआई, पोसालिया

हमने सभी प्रयास किए, फिर भी सफलता नहीं मिली: एसडीएम

हमारी तरफ से शव को कुएं से निकालने के लिए वैज्ञानिक व इंजीनियरिंग तरीके से सभी प्रयास किए गए, मगर सफलता नहीं मिली। प्रयासों में कोई कमी नहीं रखी। अब हम आगे क्या कर सकते हैं। फिलाहल बॉडी को नहीं निकाला जा सकता। -देवेंद्र यादव, एसडीएम, सुमेरपुर

परिजनों ने कुएं में दबने से मौत होने की दी रिपोर्ट : सीआई

मृतक के भाई ने रिपोर्ट दी है। इसमें कहा गया है कि उसका भाई कुआं खोदने गया था। मिट्टी ढहने से उसमें दब गया, जिससे उसकी मौत हो गई। शव को नहीं निकाला जा सका है। पुलिस ने मर्ग कायम कर जांच शुरू कर दी। -रवींद्रसिंह खींची, सीआई, सुमेरपुर