दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शनों को लेकर दायर याचिका पर सनवाई से सु्प्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है। याचिका को खारीज करते हुए कोर्ट ने कहा कि विरोध का अधिकार कहीं भी और कभी भी नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि राइट टु प्रोटेस्ट का यह मतलब यह नहीं कि जब और जहां मन हुआ प्रदर्शन करने बैठ जाएं।
लंबे समय तक विरोध के मामले में दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले सार्वजनिक स्थान पर लगातार कब्जा करना गलत है। कोर्ट ने कहा कि राइट टू प्रोटेस्ट का यह मतलब नहीं कि जब मन चाहा जहां प्रदर्शन करने लग जाएं। एक और कोर्ट में अर्जी देकर याचिकाकर्ताओं ने कहा कि किसान आंदोलन के खिलाफ लगाई गई अर्जी और हमारी याचिका एक समान है। इसके चलते सार्वजनिक स्थानों पर विरोध करने के अधिकार की वैधता पर अदालत के विचार अलग नहीं हो सकते। इस मसले पर कोर्ट को विचार करना चाहिए।
बता दें कि दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता कानून के खिलाफ 14 दिसंबर को 2019 से प्रदर्शन की शुरुआत हुई थी। सीएए के खिलाफ शाहीन बाग की लड़ाई तीन महीने से ज्यादा वक्त तक चली। सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी को वरिष्ट वकील संजय हेगडे और साधना को रामचंद्रन को जिम्मेदारी दी कि प्रदर्शनकारियों से बात कर कोई समाधान निकालें। लेकिन कई दौर की वार्ता के बाद भी कोई सुलह नहीं हो पाया था। इसके बाद कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन होने पर 24 मार्च को पुलिस ने भीड़ को शाहीन बाग से हटा दिया था।
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