16 दिसम्बर से मलमास: एक माह तक नहीं होंगे शुभ संस्कार

मलमास: 15 दिसम्बर की रात 3.42 बजे से

15 दिसम्बर की रात से एक माह के लिए शुभ कार्य पूरी तरह से बंद हो जाएंगे। किसी तरह के शुभ संस्कार नहीं हो सकेंगे। शास्त्रानुसार जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है, तब किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं करने चाहिए, इसे ही मलमास (Malmas) कहा जाता है। मलमास (Malmas) यानी सूर्य, जब धनु राशि में होता है, तब वह मलीन अवस्था में माना जाता है। यदि इस दौरान कोई शुभ संस्कार किया जाए तो उसका उचित फल प्राप्त नहीं होता। इस साल 15 दिसंबर की आधी रात 3.42 बजे सूर्य, धनु राशि में प्रवेश कर रहा है। इसी दिन से मलमास की शुरुआत होगी। जब तक सूर्य, धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश नहीं करता, तब तक शुभ संस्कारों पर रोक लगी रहेगी।
पं. राजेश शास्त्री के अनुसार 15 दिसम्बर की रात 3.42 बजे मार्गशीर्ष यानी अगहन माह के शुक्ल पक्ष की द्वाद्वशी तिथि पर मलमास लग रहा है। यह एक माह बाद पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वाद्वशी तिथि पर समाप्त होगा। मलमास (Malmas) को शुभ नहीं माना जाता।
मकर संक्रांति पर दान-पुण्य के बाद शुभ मुहूर्त अगले साल 2022 में 14 जनवरी को जब सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा, तब मकर संक्रांति मनाई जाएगी। मकर संक्रांति पर दान-पुण्य करने के बाद फिर से शुभ संस्कारों की शुरुआत होगी।

साल में दो बार मलमास

12 राशियों में से सूर्य, प्रत्येक राशि में एक माह तक विचरण करता है। धनु और मीन राशि में सूर्य का प्रवेश करना अशुभ माना जाता है। इन दोनों राशि में होने पर ही उसे मलमास (Malmas) कहते हैं। सूर्य जब धनु राशि में होता है तो उसे धनु संक्रांति और मीन राशि में होने पर मीन संक्रांति कहा जाता है।


क्या है मलमास?

शास्त्रीय मान्यता के अनुसार सात घोड़ों से सुसज्जित सूर्य देव का रथ कभी नहीं रूकता। एक बार परिक्रमा करते वक्त रथ में जुते घोड़े प्यास के मारे थक गए। सूर्यदेव को चिंता हुई कि यदि रथ रूका तो ब्रह्मांड में अनर्थ हो जाएगा। एक तालाब के किनारे दो खर यानी गधे खड़े थे। घोड़ों को पानी पिलाने के लिए सूर्यदेव ने गधों से रथ चलाया। गधों की गति धीमी होने से रथ भी धीमा हो गया। एक माह तक गधे ही रथ खींचते रहे। धीमी गति से चलने के कारण सूर्य की आभा फीकी पड़ गई, इसे ही मलमास (Malmas) कहा जाता है।
उत्तरायण के बाद शुभ संस्कार
पं. शास्त्री के अनुसार सूर्य जब धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेगा तब इसे उत्तरायण काल कहा जाता है। महाभारत काल में इच्छा मृत्यु का वरदान पाने वाले भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए उत्तरायण काल का इंतजार किया था। उत्तरायण काल में ही उन्होंने अपने प्राण त्यागे थे।
इन संस्कारों पर लगेगी रोक: सगाई एवं विवाह संस्कार नहीं हो सकेंगे। इसी के साथ जनेऊ संस्कार, मुंडन संस्कार, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्य भी नहीं होंगे।