Buddha Purnima 2021: बुद्ध पूर्णिमा को बौद्ध धर्म के अनुयायी हर्षोउल्लास से मनाते है , जानिए इसका इतिहास और महत्व

Buddha Purnima 2021: पौराणिक मान्यता के अनुसार बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) भगवान बुद्ध (Lord Gautam Buddha) के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) का पर्व प्रत्येक वर्ष वैशाख पूर्णिमा (Vaishakh Purnima) के दिन होता है। इस साल 2021 में बुद्ध पूर्णिमा तिथि 26 मई , बुधवार के दिन है। बौद्ध धर्मावलंबियों और हिंदू धर्म को मानने वाले ऐसी मान्यता रखते हैं, कि इस दिन भगवान बुद्ध (Lord Gautam Buddha) का जन्म हुआ था और इसी दिन उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था। बौद्ध धर्म के अनुयायी भारत के साथ साथ चीन, नेपाल, सिंगापुर, कोरिया , वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान , अमेरिका , यूरोपीय देशो में फैले हैं |

इस वर्ष सन् 2021 में वैशाख महीने की पूर्णिमा जिसको सभी माता-बहिने, भाई-बंधु पीपल पून्यो और बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) के नाम से जानते हैं। इस दिन शाक्य कुल में जन्मे भारतवर्ष में करुणा और मैत्री का संदेश देने वाले व समाज में समता, बंधुता व ज्ञान विज्ञान का दीप जलाने वाले, विश्व जिन्हें उपाधि के तौर पर लाइट ऑफ एशिया कहकर भी जानता है। वर्तमान में विश्व के लगभग 167 देशों में जिनके अनुयायी हैं। ऐसे सम्यक संबुध तथागत महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म आज से लगभग 2588 वर्ष पूर्व नंदनवन के लुंबिनी नामक स्थान पर शाक्य संवत् 68 सन् 567 ई.पू. हुआ था। इनके पिता का नाम राजा शुद्धोधन शाक्य था, जो शाक्य वंशज गण राज्य जिसकी राजधानी कपिलवस्तु थी, के राजा थे। इनकी माता का नाम महामाया था, जो कोलिय वंशिय थी, इनके पिता राजा अंजन जो कोली गणराज्य, जिसकी राजधानी देवदेह थी, के राजा थे।

गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। गौतम इनका गोत्र था इसलिए इन्हे सिद्धार्थ गौतम भी कहते हैं। इनकी माँ सिद्धार्थ को सात दिन का छोड़कर स्वर्ग सिधार गई। इनका पालन पोषण इनकी मौसी प्रजापति ने किया। इनके जन्म होने के बाद भविष्य विचारने वालों ने कहा कि यह बालक घर पर रहा तो चक्रवती सम्राट बनेगा और यदि गृहत्यागी हुआ तो पूर्ण योगी (संत) बनेगा। यह सुनकर राजा शुद्धोधन को चिंता हुई कि यह बालक कहीं गृहत्यागी न बन जाए क्योंकि राजा शुद्धोधन चाहता था कि मेरा बेटा मेरे बाद राज सिंहासन पर बैठकर राज करे। इसी बीच राजा ने सिद्धार्थ को विद्या अध्ययन के लिए विश्वमित्र नाम के ब्राह्मण के पास भेज दिया। इधर, महलों में राजा ने सारी सुख-सुविधाएं एवं आमोद-प्रमोद के सारे साधन बालक सिद्धार्थ के लिए उपलब्ध करा दिए और यह पाबंदी भी लगा दी कि यह बालक घर से बाहर ना जाए, जिससे बाहर का दृश्य इसे दिखाई ही ना दे। इतनी पाबंदी होने के बाद भी एक दिन सिद्धार्थ गौतम महल के बाहर एक जीर्ण-शीर्ण जराग्रस्त आदमी को देखा और पूछा कि ये आदमी ऐसा कैसे हो गया, तो सिद्धार्थ गौतम को समझाया कि जीवन के आखिरी पड़ाव पर सभी के साथ ऐसा ही होता है। अंत में दुखी होकर मर जाता है। बस उसी दिन से गौतम के हृदय में विशेष परिवर्तन हुआ, मानो उनके लिए सांसारिक चीजों में सुख और अनुराग पाने का दीपक ही बुझ गया। इसलिए राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ गौतम का विवाह 19 वर्ष कि अवस्था में कोलिय वंशिय नरेश दण्डपाणि की सुलक्षणा कुमारी यशोधरा के साथ कर दिया। अपने विवाह जीवन में गौतम बड़े संयम से रहे। विवाह के दस वर्ष बाद उनके एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम राहुल रखा। सिद्धार्थ गौतम के पुत्र पैदा होने के बाद उनके मन में एक विचार आया कि अब तक तो गृहत्याग में माँ-बाप और पत्नी ही बाधा बने हुए थे, अब पुत्र मोह भी बाधा बन जाएगा।
सिद्धार्थ गौतम अपने पुत्र को मात्र सात दिन का छोड़कर शाक्य संवत 97, आषाढ़ पूर्णिमा के दिन अर्धरात्रि के समय सारथी छंदक के साथ कंठक घोड़े पर बैठकर पत्नी को सोता हुआ छोड़कर गृहत्याग कर दिया। इस समय उनकी उम्र 29 वर्ष थी। अपनी राज्य की सीमा के बाहर अनोमा नदी के किनारे पहुंचकर सारथी को कहा कि अब आप वापस घर चले जाओ और माता-पिता को हमारा समाचार सुना देना। वहीं पर सिद्धार्थ गौतम ने तलवार से अपने लंबे केश काट डाले और राजसी वस्त्र उतारकर गेरू रंग की कथरी पहन ली। वहां से ये गंगा किनारे पहुंचे। पास ही एक ब्रह्मचर्य आश्रम में अन्य छात्रों के साथ ज्ञान प्राप्त किया, पर गौतम की प्यास नहीं बुझी। वहाँ से दूसरे विद्वान रुद्रक के पास पहुंचे, जहाँ पहले से ही उनके 5 शिष्य ज्ञान प्राप्त कर रहे थे। वे 5 शिष्य भी गौतम के साथ चल दिए और भिक्षा मांगते हुए गया पहुंचे। गया शहर के बाहर निरंजना नदी के किनारे एक सुरम्य आश्रम में गौतम तपस्या करने लग गए। उन्होंने छह वर्ष तक घोर तप किया। किसी दिन केवल पानी पीकर, तो किसी दिन एक चावल खाकर तप करते-करते शरीर सूखकर मात्र पिंजर रह गया। परन्तु जो शांति चाहते थे वो नहीं मिली। तभी आकाश से आकाशवाणी हुई कि वीणा के तारुको इतना मत खींचो की तार ही टूट जाए और इतना ढीला भी मत छोड़ो कि आवाज ही नहीं निकले।
इसके बाद उन्होंने शरीर सुखाने का विचार त्यागकर भोजन लेना शुरू कर दिया। इस पर कोंदिल आदि उनके पांच ब्राह्मण साथी यह समझकर कि गौतम अपने तप से डिग गए, उन्हें अकेला छोड़कर चले आए।
फिर वही वैशाख की पूर्णिमा शाक्य संवत् 103 बुधवार का दिन था। गौतम एक वृक्ष के नीचे बैठे, इतने में सुजाता नाम की एक क्षत्रिय बाला खीर की पत्तल लेकर उस वृक्ष के नीचे पूजा करने के लिए आई और गौतम को कोई देव समझकर वह खीर उन्हें दी। गौतम उसे लेकर निरंजना नदी में शुद्ध होकर, जमीन पर घास बिछाकर उस पर बैठकर खीर खाई और पीपल पेड़ के नीचे पद्मासन लगाकर बैठ गए। साथ ही विचार करने लगे की घर-बार छोड़ा, कठिन तप किया, पर चित्त को शांति नहीं मिली। ना जाने सत्य का मार्ग किधर है। वे इन्हीं विचारो में डूब गए। इसी समाधि अवस्था में उनके भीतर ज्ञान का प्रकाश हुआ मानो संसार मगन होकर बुद्ध के चरणों में गिर गया। भगवान बुद्ध सात दिन तक उसी निश्च्छल अवस्था में लीन अनंत आनंद में मगन बैठे रहे। आठवें दिन उठे और जलपान किया। फिर बुद्ध को विचार आया कि उनका ज्ञान लोगों को कैसे समझ में आएगा? तो सबसे पहले अपने दो गुरुओं को ढूंढने निकले, फिर अपने पांच साथियों को ढूंढते हुए काशी के निकट सारनाथ में आए। वहाँ पांचों सन्यासी साथी मिल गए। सर्वप्रथम बुद्ध ने इन्हीं साथियों को सारनाथ में उपदेश दिया।

इस प्रथम उपदेश का नाम धर्मचक्र प्रवर्तन सूत्र है। इस प्रकार लगभग 60 भिक्षुओं का संघ बनाकर बौद्ध धर्म को उपदेश देने के लिए भिन्न-भिन्न स्थानों में भेजा और कहा कि विशुद्ध धर्म के मार्ग का उपदेश करो। वे स्वयं भी अपने जीवन के शेष 45 वर्ष तक सर्वत्र उपदेश देते और लोगों को संघ में दीक्षित करते रहे, मगध, कौशल, कौशांबी, शाक्यकोलिय, लिक्षवी आदि राज्यों में उनका विशेष मान था। गौतम बुद्ध के उपदेशों में मुख्यत:

A.पंचशील:- अर्थात 5 आज्ञाएं, जो गृहस्थ और भिक्षु सबके लिए हैं- (1) अहिंसा (2)अस्त्तेय (3)सत्य (4) ब्रह्मचर्य (5) नशीली चींजो का त्याग।

B. त्रिरत्न:- (1) बुद्दम् शरणम गच्छामि (2) धम्मम् शरणम गच्छामि (3) संघम शरणम गच्छामि अर्थात हम बुद्ध उनके प्रतिपादित धर्म और उस धर्म के प्रचार के लिए संगठित संघ की शरण में जाते है।

C. बौद्ध साहित्य:- तीन भागों में बटा हुआ हैं। (1) सु सुत्तपिटक :- इसमें बुद्ध के उपदेश प्राय उन्हीं के मुख से कहे हुए है। (2) विनयपिटक:- इसमें बौद्ध संघ के लिए नियम हैं (3) अभिधम्म:- इसमें सिद्धांतो के ऊपर विचार और साष्टार्थ हैं।

D. बौद्ध तीर्थ स्थान:- (1) लुंबिनी ग्राम:- यहां सम्राट अशोक का स्तंभ अभी तक बुद्ध के जन्म प्रदेश की सूचना दे रहा हैं। गोरखपुर से पाचवा स्टेशन फरेंदा है, यहां से ब्रांच लाइन गई हैं जो नेपाल की सीमा पर स्थित हैं नौ तनुआ से लुंबिनी दस मील दूर हैं। कपिलवस्तु का वर्तमान नाम तौलिहवा हैं (2) बौधगया:- गया रेलवे स्टेशन से सात मील पर बैधिगया का मंदिर हैं यही पर बुद्ध को संबोधि प्राप्त हुई थी। (3) सारनाथ:- बनारस से साढ़े तीन मील उत्तर की और है यही पर सर्वप्रथम भगवान बुद्ध ने धर्म का उपदेश दिया था। (4) कुशिनारा:- गोरखपुर जिले की पडरौना तहसील में कशिया नाम का गांव ही प्राचीन कुशीनारा हैं। यही पर भगवान बुद्ध ने शरीर छोड़ा था। आज भी यहां एक बड़ा स्तूप खड़ा हैं।

अस्सी वर्ष की अवस्था में बुद्ध बहुत बीमार हुए उस समय उन्होने कहा कि हे आनंद आज से तीन महीने बाद हम इस दुनिया में नहीं रहेंगे। जब वे स्वस्थ हो गए तो गौतम बुद्ध वैशाली होते हुए पावा शहर आए वहा से चुंद नामक सुनार की आम्र वाटिका में ठहरे और अंत में कहे अनुसार तीन महीने बाद कुशिनारा पहुंचकर भगवान ने आनंद आदि प्रमुख शिष्यों के बीच में अपनी इहलीला समाप्त की। मरण से कुछ क्षण पहले उन्होने शिष्यों से कहा यदि किसी को कोई संशय हो तो इसी समय पूछ लो, बाद ने पछतावा नहीं रहेगा। सभी शिष्य मौन रहे। इतना कहकर भगवान बुद्ध महानिद्रा में चले गए। उसी दिन शाक्य संवत 148 वैशाख पूर्णिमा मंगलवार का दिन था, इसके पश्चात शाक्य संवत समाप्त हो गया और बौद्ध संवत चला जो आज 2572 है।

*गौतम बुद्ध का जन्म वैशाख पूर्णिमा शाक्य संवत 68 (567 ईसा पूर्व) को हुआ। *गौतम बुद्ध को संबोधि वैशाख पूर्णिमा शाक्य संवत 103 में प्राप्त हुई * गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण वैशाख पूर्णिमा शाक्य संवत 148 में हुआ। इसलिए इसको त्रिगुन पावन पूर्णिमा कहते हैं। अतः आप सभी से कर बद्ध निवेदन है कि कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए 26 मई बुधवार को बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) के दिन शाम को सभी अपने-अपने घरों में दीप जलाकर महात्मा गौतम बुद्ध की जयंती मनाए। – चोखेलाल कोली, जिला महामंत्री, सवाई माधोपुुर (राज.), अखिल भारतीय कोली समाज।