प्रदेश में अब गांवों व खेतों से गुजरने वाली बिजली लाइनें को केबल में बदल कर अंडरग्राउंड नहीं किया जाएगा। बिजली की ओवरहैड लाइन की तुलना में अंडरग्राउंड केबल डालने में पांच से सात गुना ज्यादा खर्चा आता है। इसके साथ ही केबल खराब होने पर कई दिनों तक सही नहीं हो पाती है तथा पूरे इलाके में सप्ताह से भी ज्यादा समय तक बिजली गुल रहती है। पिछली सरकार के दौरान अंडरग्राउंड केबल करने के नाम पर 500 करोड़ रुपए की गड़बड़ी होना बताया जा रहा है। गांवों व खेतों में बिजली लाइनों को बिना जरूरत ही अंडरग्राउंड करने वाली एक्सईएन व अधीक्षण अभियंताओं की जांच करवा कर चार्जशीट देने की कार्यवाही की जा रही है। जयपुर डिस्कॉम के प्रबंध निदेशक एके गुप्ता का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में बेवजह बिजली लाइनों को अंडरग्राउंड करने से डिस्कॉम पर आर्थिक भार पड़ रहा था। ओवरहैड लाइन में खर्चा भी कम आता है तथा फॉल्ट होने पर आसानी से सुधार सकते है। ऐसे में अब छोटे कस्बों व ग्रामीण इलाकों में ओवरहैड लाइन ही खींची जाएगी।
केबल अंडरग्राउंड करने में आता है ज्यादा खर्चा
प्रदेश में 11 केवी की बिजली लाइन ओवरहैड खींचने पर तार (कंडक्टर) व मजदूरी सहित केवल 250 रुपए प्रति मीटर का खर्चा आता है। जबकि वर्मीयर सिस्टम से बिजली केबल अंडरग्राउंड करने पर 1400 रुपए प्रति मीटर का खर्चा हो जाता है। इसमें केबल की कीमत करीब 1000 रुपए प्रति मीटर है तथा वर्मीयर सिस्टम के लिए ठेकेदार को 403 रुपए प्रति मीटर का पेमेंट किया जाता है। वही बोगी सिस्टम से केबल अंडरग्राउंड करने पर 202 रुपए प्रति मीटर और नाली खोदकर केबल जमीन में डालने पर 110 रुपए प्रति मीटर का खर्चा होता है।
डिस्काॅम में ठेकेदार लॉबी हो रही हावी
जयपुर, कोटा, जोधपुर, उदयपुर जैसे बड़े शहरों में झूलते हुए तारों को हटाने के नाम पर केबल अंडरग्राउंड करने का काम शुरु हुआ। लाइनों को अंडरग्राउंड करने वाले कई ठेकेदार कुछ सालों में ही करोड़ों का पेमेंट उठा लिया। इससे ठेकेदारों व इंजीनियरों में लालच बढ़ गया। बाद में कुछ जगह लाइन खींचने में विवाद और रोड क्रॉसिंग होने के नाम पर केबल भूमिगत करने का धंधा चल पड़ा। इससे डिस्कॉम को करोड़ों का नुकसान हुआ है। अब प्रबंधन इसकी जांच करवा रहा है।