इतिहास खुद को दोहराता है। यह बात प्रदेश की राजनीति में चरितार्थ हो रही है। 53 साल पहले राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 36 विधायकों को साथ लेकर प्रदेश में कांग्रेस की डीपी मिश्रा की सरकार को गिराया था। इस साल मार्च में उनके नाती ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 15 माह पुरानी कमल नाथ सरकार को गिरा दिया और 22 विधायकों के साथ भाजपा की सदस्यता ले ली। इसलिए अब इन सीटों सहित 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक राज चड्डा बताते हैं कि 1967 में प्रदेश में कांग्रेस की डीपी मिश्रा की सरकार थी। ग्वालियर से शुरू हुए छात्र आंदोलन ने प्रदेश सरकार को हिला दिया था। आंदोलन के दौरान महाराज बाड़ा ग्वालियर में प्रदर्शन में पुलिस ने छात्रों पर फायरिंग कर दी, जिसमें श्यामलाल नामक छात्र की मौत हो गई। इसे लेकर विजयाराजे सिंधिया अपनी ही सरकार के खिलाफ मुखर हो गईं। जब तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा से मिलने भोपाल पहुंची तो उनको दफ्तर के बाहर इंतजार कराया गया। वहीं जब एसपी को हटाने की मांग रखी तो वह भी स्वीकार नहीं की गई। इसके बाद राजमाता ने 36 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ दी और संयुक्त विधायक दल गठित किया। इससे सरकार अल्पमत में आ गई और राष्ट्रपति ने प्रदेश की डीपी मिश्रा सरकार को बर्खास्त कर दिया। उधर राजामाता ने 36 विधायकों के साथ बैठक की और राष्ट्रपति से मिलने दिल्ली गई। इसके बाद प्रदेश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी।
इसलिए छोड़ा ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस का साथ
सन् 2001 में माधवराव सिंधिया की विमान हादसे में मौत के बाद उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से जुड़कर राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। 19 साल के राजनीतिक जीवन में वह कांग्रेस संगठन और सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहें हैं। 2018 में कांग्रेस ने उन्हें चेहरा बनाकर विधानसभा का चुनाव लड़ा और सत्ता में 15 साल बाद कांग्रेस की वापसी हुई। प्रदेश में सरकार बनी और मुख्यमंत्री कमल नाथ बने। कुछ समय बाद ही सरकार में तवज्जों नहीं मिलने से टकराव की स्थिति बन गई। 10 मार्च 2020 को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने समर्थक 22 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। सिंधिया ने आरोप लगाया कि जिन मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ा गया थाए उन पर भी सरकार ने काम नहीं किया। इसके बाद कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई और मुख्यमंत्री कमल नाथ को इस्तीफा देना पड़ा।
ये है समानता
- 1967 में भी राजमाता विजयाराजे सिंधिया विधायकों को हवाई जहाज से दिल्ली लेकर गईं थी। अब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी 22 विधायकों को बैंगलुरू हवाई जहाज से पहुंचाया था।
- राजमाता विजयाराजे ने कांग्रेस छोडऩे के बाद जनसंघ की सदस्यता ली थी, जो अब भाजपा के नाम से जानी जाती है। ज्योतिरादित्य ने भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा है।