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वैर (मुरारी शर्मा)। कस्बा वैर (Vair) में मंगलवार को भगवान श्रीराम की रथयात्रा बैण्डबाजे की स्वरलहरियों के साथ हर्षोउल्लास के साथ निकाली गई। भगवान श्रीराम की रथयात्रा के अवसर पर क्षेत्रीय सांसद रंजीता कोली भी उपस्थित थी।
राजा प्रताप सिंह के राजशाही जमाने से ही भगवान् श्रीराम का रथयात्रा मेला भरता चला आ रहा है। भरतपुर जिला मुख्यालय से 47 किलोमीटर दूर बसे ऐतिहासिक कस्बा वैर में आयोजित इस ऐतिहासिक रथयात्रा मेले में लंबे समय से चली आ रही परम्पराओं के भी दर्शन होते हैं। लोग इसमें पारिवारिक और व्यक्तिगत जीवन के झंझटों की चारदीवारी से बाहर आकर एक-दूसरे से आपस में मिलकर हंसते-बोलते हुए भगवान श्री राम की झांकी के दर्शनों के लिए लालायित हो उठते हैं।
मेले में समाज की विभिन्न जाति संप्रदाय ऊंच-नीच की सीमा लांघकर परस्पर एकता और आत्मीयता की भावना पुष्ट होती है। यह मेला लोगों के मनोरंजन मन बहला और उनके आर्थिक विकास के साधनों के साथ-साथ धार्मिक भावना का भी स्मरण कराता है। रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को सीताराम जी मंदिर से बैंड बाजे के साथ भगवान श्रीराम के जयघोष के साथ निकाली जाती है। दूसरे दिन सीताराम जी मंदिर के सामने मेला भरता है यहां बाहर से आकर दुकानदार अपनी दुकानें लगाते हैं।
सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व के इस मेले में रथ यात्रा प्रारंभ होने से पूर्व मंदिर की दीवार पर शगुन के तौर पर साबुत गोला फेंक कर फोडा़ जाता है तथा हल्की बारूद भरकर पटाका चलाया जाता है, जिसकी गूंज काफी दूरी तक लोगों सुनाई देती है। पटाका चलने की गूंज के साथ ही मंदिर प्रांगण से सीताराम जी के उद्घोष के साथ भगवान श्री राम लक्ष्मण और सीता माता की प्राचीन प्रतिमाओं को काठ से बने रथ में आरूढ कराया जाकर एवं आरती उतारकर रथ यात्रा प्रारंभ होती है।
भगवान सीताराम जी के रथ को दो बड़े रस्सों के सहारे भक्तजनों द्वारा खींचा जाता है। यह रथयात्रा कस्बे के गोपालगंज, पुराना बाजार, चांदनी चौक, लाल चौक होते हुए जैन मंदिर गली, गद्दी पट्टी, कहार मोहल्ला, बिचपुरी पट्टी होते हुए नए बस स्टैंड तथा पुलिस थाने के सामने होते हुए डाक बंगला तिराहा, भुसावर गेट होते हुए वापस सीताराम जी मंदिर लोटकर आती है। रथयात्रा का भव्य स्वागत किया जाकर भगवान श्री राम के रथ के नीचे से नवजात शिशुओं को उनकी माताओं द्वारा निकाला जाकर उनकी दीर्घायु की कामना की जाती है। भगवान श्री राम के इस रथ पर कस्बावासियों द्वारा चढ़ावा चढ़ाकर अपनी श्रद्धा का इजहार किया जाता है। रथयात्रा को देखने के लिए आसपास के गांव के लोग भी काफी संख्या में पहुंचते हैं।
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यह रथयात्रा मेला उस समय भरता है जब किसान अपनी रवि की फसल को समेटकर अपने घर में भर लेता है। रवि की फसल के उत्पादन की खुशहाली लोगों के मनों में स्वत: ही एक उमंग और उल्लास भरती हुई उन्हें मेले में शामिल होने को प्रेरित करती है। महिलाएं भी इस मेले का आनंद उठाने में पीछे नहीं रहती। उनका भी मन करता है कि वह भी चारदीवारी के भीतर अपनी रोजमर्रा की घरेलू जिंदगी के बंधनों से मुक्त होकर अपनी सखी-सहेलियों के साथ मेले में जाएं और वहां बिकने वाला खानपान की वस्तुओं का रसास्वादन करें।
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बुजुर्गों का कहना है कि पहले लोगों को जरूरत का सामान आसानी से उपलब्ध होने की परेशानी रहती थी, तब इस मेले में दूर-दूर से व्यापारी आकर विभिन्न दुकान लगाते थे। इससे आम लोगों को घरेलू उपयोग का सामान एक ही जगह मिल जाता था अब लोगों की रोजमर्रा का सामान गांव कस्बों में आसानी से मिल जाता है इससे मेले में खरीदारों की संख्या में गिरावट आने से दुकानदारों की संख्या में भी कमी आई है। साथ ही कस्बा के भौगोलिक विस्तार के कारण नगर पालिका प्रशासन द्वारा मेले के प्रति रुचि कम रखने के कारण मेला मैदान छोटा सा हो गया है। राजशाही जमाने के दौरान जो रौनक हुआ करती थी वह रौनक धीरे-धीरे कम होती जा रही है।
पहले आसपास के देहातों से आने वाले ग्रामीणों के जनसैलाब में महिलाओं की उपस्थिति रहती थी परंतु उनकी संख्या में गिरावट आ रही है। लोगों द्वारा यात्रा के दौरान जगह-जगह स्वागत सत्कार के लिए दर्शनार्थियों को कहीं नींबू की शिकंजी, कहीं ठंडाई, कोल्ड ड्रिंक्स तो कहीं शरबत आदि की व्यवस्था की जाती है।
पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए जाते हैं। नगरपालिका के सफाई कर्मचारियों द्वारा रास्ते हो रहे अतिक्रमणों को ध्वस्त किया जाकर रथयात्रा आगे बढ़ती जाती है। सरकार की तरफ से किसी प्रकार का कोई संरक्षण आदि नहीं मिलने के कारण निजी तौर पर कस्बा के लोगों द्वारा यह रथयात्रा निकाली जाती रही है। जिसमें सभी जातियों का विशेष योगदान रहता है।