कोविड 19 की भेंट चढ़ चुके शिक्षा सत्र को बचाने के लिए शिक्षा विभाग दो बड़े निर्णय करने जा रहा है। इस साल शीतकालीन अवकाश जहां कम हो जायेंगे, वहीं शिक्षा सत्र अब मार्च में नहीं बल्कि 15 मई तक चलेगा। ऐसे में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षाएं भी मार्च में होगी। माध्यमिक शिक्षा निदेशालय ने इस संबंध में विस्तृत कार्य योजना बनाकर शिक्षा मंत्री गोविंद डोटासरा को भेज दी है, जहां से मुख्यमंत्री को भेजी गई है। उम्मीद की जा रही है कि आजकल में ही यह निर्देश जारी होंगे। सूत्रों की मानें तो इस बार दीपावली व शीतकालीन सत्र महज तीन दिन के होंगे। जो पहले एक सप्ताह से अधिक के होते थे। वहीं, शिक्षा सत्र को भी आगे बढ़ा दिया गया है। पंद्रह मई तक स्कूल नियमित रूप से खुलेंगे। इसके बाद बोर्ड परीक्षा आयोजित करेगा। ऐसे में मई के अंतिम सप्ताह में शुरू होने वाली परीक्षा जून के प्रथम सप्ताह तक आयोजित हो सकती है।
150 दिन पूरे करने हैं
दरअसल, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर की परीक्षाओं के लिए स्कूलों के 150 दिन खुलने की बाध्यता है। अगर ऐसा नहीं होता है तो शून्य सत्र घोषित करना होगा। निदेशालय ने इसी कारण शीतकालीन अवकाश कम करने का प्रस्ताव दिया है।
75 फीसदी उपस्थिति बाध्यता की कैसे होगी पालना
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर की परीक्षा के लिए 75 फीसदी उपस्थिति जरूरी है। अगर दो नवम्बर से इन बच्चों को स्कूल बुलाया भी जाता है तो उन्हें 15 मई तक सिर्फ 25 फीसदी दिन ही अवकाश मिलेगा। कोरोना काल में अगर कोई बच्चा कोविड पॉजीटिव आ गया तो उसे 15 दिन तो सरकार ही आइसोलेट कर देती है। वहीं अभिभावक कोविड के भय से स्कूल भेजने को तैयार नहीं हुए तो उपस्थिति के लिए भी बोर्ड को विशेष छूट देनी पड़ेगी।
पढ़ाई फिर भी पूरी नहीं होगी
अगर विद्यालय संचालकों का मानें तो 60 फीसदी पाठ्यक्रम पूरा करना भी अब मुश्किल होगा। दरअसल, बड़ी संख्या में अभ्यर्थी अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं है। दसवीं कक्षा के बच्चों को मार्गदर्शन के लिए स्कूल आने की छूट थी लेकिन 90 फीसदी स्कूलों में कोई बच्चा मार्गदर्शन लेने नहीं आया। शिक्षक कमलेश शर्मा का कहना है कि कोरोना का भय इतना अधिक है कि अभिभावक स्वयं बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते। शिक्षा विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक विजय शंकर आचार्य का कहना है कि कोरोना के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में बिल्कुल पढ़ाई नहीं हुई है। वहां ऑनलाइन पढ़ाई का कोई जरिया ही नहीं है। अब शुरू से इन बच्चों को पढ़ाकर 60 फीसदी कोर्स करवाना मुश्किल है। सरकार को और पाठ्यक्रम कम करना चाहिए। शिक्षक नेता रवि आचार्य का कहना है कि सरकारी स्कूलों में भी मार्गदर्शन वाले बच्चों की संख्या नगण्य रही। ऐसे में दो नवम्बर से कक्षाएं शुरू होगी तो भी बच्चों को अभिभावक नहीं भेजेंगे।
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