मातृ दिवस पर विशेष कविता ”माँ”

है माँ तो है,
उजालों का सवेरा।
है माँ तो है,
सुन्दर सा बसेरा।।

माँ है तो जहां है,
नहीं तो, जहां में बाकी क्या है।
नहीं है दिखता ओर कुछ,
इक तेरा ही निशां है।।

भूल जाती है वो,
है उसकी कोई ख्वाहिश।
बनाने को भविष्य बच्चों का,
करती है अपनी हर कोशिश।।

तू है तो है,
बिखरी राह में रोशनी।
तुझसे ही तो है सब,
है हर जगह चांदनी।।

कहां देखते हो तुम जन्नत को,
सोचते हो है मौत के बाद।
एक बार देख लो आकर,
है जन्नत माँ का आंचल।।

निकलती है दुआएं तेरे लवों से,
सजती है आशाएं तेरी निगाहों से।
फूटते हैं झरने खुशियों के,
जब आए हम, तेरी पनाहों में…।।

-मनीष कुमार अग्रवाल, अधिवक्ता
गंगापुर सिटी।