कोरोना संक्रमण के कारण उपजे हालात में इस बार जोधपुर में सार्वजनिक रूप से रावण दहन नहीं होगा। विजयदशमी पर जहां पूरा देश असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक इस दिन खुशी मनाएगा। वहीं, जोधपुर में स्वयं को रावण का वंशज मानने वाले कुछ परिवार बाकायदा शोक मनाएंगे। ऐसी मान्यता है कि मंदोदरी के साथ रावण का विवाह जोधपुर में हुआ था। उस समय बारात में आए ये लोग यहीं पर बस गए। इन लोगों ने रावण का मंदिर बनवा रखा है और नियमित रूप से रावण की पूजा करते है। मंदिर के मुख्य पुजारी कमलेश दवे का कहना है कि रावण दहन भले ही न हो, लेकिन इस दिन हम शोक मनाते आए है और इस बार भी ऐसा ही होगा। शाम को हम लोग स्नान कर अपनी जनेऊ बदलने के बाद रावण की विधिवत पूजा-अर्चना कर भोग चढ़ाएंगे।
दावा है कि रावण की बारात में आए कुछ लोग यहीं पर बस गए
जोधपुर के मेहरानगढ़ फोर्ट की तलहटी में रावण और मंदोदरी का मंदिर स्थित है। गोधा गौत्र के ब्राह्मणों ने यह मंदिर बनवा रखा है। इस मंदिर में रावण व मंदोदरी की अलग-अलग विशाल प्रतिमाएं स्थापित है। दोनों को शिव पूजन करते हुए दर्शाया गया है। पुजारी कमलेश कुमार का दावा है कि उनके पूर्वज रावण के विवाह के समय यहां आकर बस गए। पहले रावण की तस्वीर की पूजा करते थे, लेकिन वर्ष 2008 में इस मंदिर का निर्माण कराया गया। हम लोग रावण की पूजा कर उनके अच्छे गुणों को लेने का प्रयास करते है। जोधपुर में इस गौत्र के करीब सौ व जिले के फलोदी में साठ परिवार निवास करते है। उन्होंने बताया कि रावण महान संगीतज्ञ होने के साथ ही वेदों के ज्ञाता थे। ऐसे में कई संगीतज्ञ व वेद का अध्ययन करने वाले छात्र रावण का आशिर्वाद लेने इस मंदिर में आते है।
यह है लोक मान्यता
ऐसा कहा जाता है कि असुरों के राजा मयासुर का दिल हेमा नाम की एक अप्सरा पर आ गया। हेमा को प्रसन्न करने के लिए उसने जोधपुर शहर के निकट मंडोर का निर्माण किया। मयासुर और हेमा की एक बहुत सुंदर पुत्री का जन्म हुआ। इसका नाम मंदोदरी रखा गया। एक बार मयासुर का देवताओं के राज इन्द्र के साथ विवाद हो गया और उसे मंडोर छोड़ कर भागना पड़ा।
उसके जाने के बाद मंडूक ऋषि ने मंदोदरी की देखभाल की। अप्सरा की बेटी होने के कारण मंदोदरी बहुत सुंदर थी। ऐसी रूपवती कन्या के लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा था। आखिरकार उनकी खोज उस समय के सबसे बलशाली और पाराक्रमी होने के साथ विद्वान राजा रावण पर जाकर पूरी हुई। उन्होंने रावण के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। मंदोदरी को देखते ही रावण उस पर मोहित हो गया और शादी के लिए तैयार हो गया।
रावण अपनी बारात लेकर शादी करने के लिए मंडोर पहुंचा। मंडोर की पहाड़ी पर अभी भी एक स्थान को लोग रावण की चंवरी(ऐसा स्थान जहां वर-वधू फेरे लेते है) कहते है। बाद में मंडोर को राठौड़ राजवंश ने मारवाड़ की राजधानी बनाया और सदियों तक शासन किया। वर्ष 1459 में राठौड़ राजवंश ने जोधपुर की स्थापना के बाद अपनी राजधानी को बदल दिया। आज भी मंडोर में विशाल गार्डन आकर्षण का केन्द्र है।
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