शुक्रवार को हुई जाट महापंचायत में किसानों का समर्थन करने का फैसला लिया गया है। इस पंचायत में हरियाणा और यूपी के 10 हजार किसानों की मौजूदगी सरकार के लिए उलटा पड़ रही है। किसान आंदोलन में जाट समुदाय का इस तरह से उतरना बीजेपी के लिए सियासी खतरे से कम नहीं है। गुरुवार को ही टिकरी, सिंघु और गाजीपुर बॉर्डर पर भारी संख्या में पुलिस फोर्स तैनात की गई। लेकिन मीडिया के सामने राकेश टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन की पूरी तस्वीर बदल दी।
इस पूरे नाटकीय घटनाक्रम के बाद यूपी पुलिस को भी धरना स्थल से अपने पांव पीछे खींचने पड़े। इसके साथ ही किसानों का काफीला दिल्ली और गाजीपुर बॉर्डर की तरफ फिर से बढ़ा है। इससे आंदोलन को मजबूती मिलने के साथ ही किसानों ने बीजेपी की बढ़ा दी है।
टिकैत के आंसुओं ने किसान आंदोलन को वेस्ट यूपी की प्रतिष्ठा से जोड़ दिया है। उसके बाद यूपी और हरियाणा के किसान नेता गाजीपुर बॉर्डर पर टिकैत के समर्थन में उतर आए। टिकैत के आंसू अब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में क्या सियासी हथियार बनेंगे? इस आंदोलन से यूपी की सत्ता में किसानों और जाट समुदाय से अलग समीकरण बनने के कयास लगने लगे हैं। गणतंत्र दिवस को किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद दो महीने से चल रहे किसान आंदोलन के भविष्य पर संकट के बादल छा गए थ।