गंगा में 450 किमी तक फैल रहा औद्योगिक अपशिष्ट, मछलियों में मिला खतरनाक कैडमियम-लेड

डॉ. भार्गवी मिश्रा।

कैप्रियो मछली में सर्वाधिक

वाराणसी। गंगा नदी में कई किलोमीटर तक औद्योगिक अपशिष्ट होने से प्रदूषण गहरा रहा है। वाराणसी के 25 किमी क्षेत्र में यह अधिकतम स्तर से 6 गुना ज्यादा है। यह खुलासा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के मेडिकल इंस्टीट्यूट में हुए शोध के बाद हुआ।

रिसर्च में प्रयागराज से बक्सर तक गंगा के पानी की सैंपलिंग की गई। इसमें वाराणसी का पॉल्यूशन लोड इंडेक्स (पीएलआई) लेवल 6.78 पाइंट आया, जबकि इसका का स्तर एक पाइंट से कम होना चाहिए। पीएलआई में कैडमियम, क्रोमियम लेड, मैगनीज जैसे मेटल पॉल्यूशन को रखा गया है।

यह रिसर्च आईएमएस-बीएचयू में न्यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. विजयनाथ मिश्रा की देखरेख में डॉ. भार्गवी मिश्रा और डॉ. गीता जे गौतम ने किया। यह इंटरनेशनल रिसर्च पेपर बायोलॉजिकल ट्रेस एलीमेंट्स रिसर्च में प्रकाशित भी हुआ है। कमोबेश यही हालात गंगा में 7 स्पीशीज मछलियों और कृषि योग्य भूमि की मिट्टी के भी हैं।

मछलियों पर मेटल पॉल्यूशन का खतरा मंडरा रहा है। इसका मतलब यह है कि कथित पवित्र गंगा का पानी ना तो नहाने के योग्य है और ना ही गंगा की मछलियां खाने लायक हैं। इससे न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, पार्किंसन, कैंसर, डिमेंशिया, एएलएस अमायो का खतरा है। पिछले 5 सालों में बीएचयू अस्पताल में इस प्रकार के 2000 से अधिक मरीज आए हैं, जिनके ब्लड में जरुरत से ज्यादा मेटल पाया गया।

प्रो. विजयनाथ मिश्रा के अनुसार प्रयागराज के फाफामऊ से बक्सर तक करीब 150 जगह से गंगा नदी से, वाराणसी में 10 घाटों नगवां से वरुणा-गंगा संगम घाट तक पानी का सैंपल लिया। उनके अनुसार गंगा से बाजार में लाई गईं मछलियों का डी-सेक्शन कर उन्हें काटकर उनके लीवर, मसल्स आदि का अध्ययन किया गया। कई अंग में मेटल पॉल्यूशन पाया गया।

सबसे ज्यादा हेवी मेटल कैप्रियो मछली में पाया जिसे लोग ज्यादा पसंद करते हैं। मिश्रा के अनुसार पर्किंसन मरीजों और डिमेंशिया में दवा का असर कम दिखा। उनके ब्लड में मेटल पॉल्यूशन मिला है। गंगा के पानी में मेटल पॉल्यूशन की वजह वाराणसी में साड़ी इंडस्ट्रीज, बीएलडब्ल्यू, अस्पतालों के हजार्ड्स, भदोही के कालीन इंडस्ट्री का वेस्ट वरुणा से होते हुए गंगा में मिल जाता है।

डॉ. भार्गवी मिश्रा के अनुसार वाराणसी में कई घाट पर जांच की। वाराणसी में सबसे ज्यादा हैवी मेटल नगवां भार्गवी के अनुसार गंगा के पानी से 3 तरीकों से हेवी मेटल हमारे शरीर में प्रवेश करता है। पहला गंगा के पानी से स्नान करने पर स्किन द्वारा पानी शरीर और ब्लड में जाता है। मछली खाने और मिट्टी में उगाई सब्जियों को खाने से मेटल शरीर में जा रहा है। इंसानी शरीर के लिए लेड और कैडमियम बहुत खतरनाक हैं जबकि मैग्नीज और क्रोमियम उससे कम नुकसानदायक हैं।

जानकारी के अनुसार जो लोग मछलियां खाते हैं, चाहे वह कहीं से भी निकाली या खरीदी गई हो, उनके खून में मेटल कंसंट्रेशन ज्यादा मिला है। खून में जरूरत से ज्यादा मेटल होना खतरनाक है। खून में कैडमियम और लेड होना ही नहीं चाहिए। ऐसे में गंगा घाटी के लोगों को ज्यादा परेशानी है।