कोरोना की मार

हे भगवान! तूने यह क्या गजब कर डाला,
बंद हो गया है सबके घरों का ताला,
छीन लिया तूने निवाला,
सब कुछ खत्म होने की कगार पर है,
निकलता जा रहा है अब तो सभी का दिवाला।

बहुत बुरा हाल है,
यह कैसा भूचाल है,
ना ही घर में शुकून है,
बाहर देखो तो खस्ताहाल है।

हर कोई बदहाल है,
प्रभू यह कैसा मायाजाल है,
सभी कह रहे हैं, घर में रहो,
जैसे वहाँ हर कोई मालामाल है।

दूर के ढोल दूर से, बहुत सुहावने लगते हैं साहब,
कहने में क्या हर्ज है, बचने के बहाने होते हैं साहब।

देखो तो सहाब यह कौन सड़क पर, बोझा ढ़ोते चला है,
किस्मत अपनी को कोसता हुये, यह कौन रोते चला है।
भूखा है इसलिए फूल रही है शायद, सांसें इसकी,
इक जून रोटी की आस में, यह दौड़ता, प्यासा चला है।

कोई देखो तो जरा, यह पड़ौस में क्या हो रहा है,
शायद किसी बदनसीब को, कोरोना हो रहा है।
जा रहा है गाड़ी में जनाजा किसी का शायद,
इसलिए इस वीरान बस्ती, में रोना-धोना हो रहा है।

मानो या ना मानो साहब,
यह कुदरत का खेल है,
सब को नचाने वाले, आज नियति के आगे फेल है।

वह कह रहा है, मैं कोरोना, मुझे कोई रोको ना,
जहां भी जाऊं मेरी मर्जी, मुझे कोई टोको ना।
करोगे गर लापरवाही, तो कोई रोने वाला ना मिलेगा,
घर रहते हो तो ठीक, नहीं तो लाश ढ़ोने वाला ना मिलेगा।

सरकारी गाड़ी ना आए घर पर, अर्ज करो परवरदिगार से,
सच में कुछ हो गया तो, कोई छूने वाला ना मिलेगा।

जोश में होश खोने वालों से पूछो, कैसा महसूस करते हैं
14 दिन तक रात को बिना सोए, आकाश में तारे गिनते हैं।

विनती है मेरी घर में रहकर भी, सतर्क रहना चाहिए,
मास्क लगाकर मुँह ढक कर, ना बेनकाब होना चाहिए।

गर तोड़े सरकारी नियम, तो साथ देने वाला ना मिलेगा,
कोरोना कहता डरो मुझसे, कोई रोने वाला ना मिलेगा।

  • प्रोफेसर रामकेश आदिवासी
    सह आचार्य, संस्कृत
    राजकीय महाविद्यालय, गंगापुर सिटी