मेरी माँ (मातृत्व दिवस पर विशेष)

माँ, तू प्रतिरूप ममता का,
माँ, तू समरूप समता का,
माँ, तू ही सबसे सुंदर है,
तू अद्भुत रूप है क्षमता का।

जननी, तेरी उतारू आरती, तू ही सचमुच है माँ भारती,
माँ, तू ही मेरा सब कुछ है, माँ तू ही मेरी सारथी।

तुम शान हो मेरी माँ, ईमान हो मेरी माँ,
मेरा मान हो मेरी माँ, अभिमान हो मेरी माँ,
स्वाभिमान हो मेरी माँ, बलिदान हो मेरी माँ,
तुम जान हो मेरी माँ, मेरा जहान हो मेरी माँ,
है दयावान मेरी माँ, मेरे प्राण मेरी माँ।

माँ, मैं तुझको नमन करुँ,
क्या तुमको मैं समर्पित करुँ,
भाव समर्पण मैं करूँ,
ये जीवनधन भी अर्पण करुँ।

जिसके सर पर हाथ तुम्हारा, उसका कौन बिगाड़े क्या?
जिसके घर में तेरा साया, उसका कौन संवारे क्या?

हे माँ, तुम ही सुकून, तुम ही जुनून,
तुम ही ममता की मूरत हो,
माँ, तुम तो सचमुच हो भोली,
तुम ही कवि की कविता हो।

माँ, मेरी हिम्मत, मेरी ताकत, तुम मेरी शोहरत, फितरत हो,
मैं अंतर्मन से कहता माँ, सचमुच, तुम ही भगवान की मूरत हो।

जय जननी,
जय भारती,
जय जय जय माँ भारती।

प्रोफेसर रामकेश आदिवासी
सह आचार्य, संस्कृत
राजकीय महाविद्यालय, गंगापुर सिटी