ग्राउंड रिपोर्ट संत कबीर नगर: यहां मासूमों का वजन और लंबाई रह जाती है उम्र से आधी

कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चों के लिए चलाई जा रही योजनाओं के दावे और हकीकत में जमीन-आसमान का अंतर है। पड़ताल से पता चला कि कुपोषण के खात्मे की जंग में अधिकारी और कर्मचारी भागीदार तो बन रहे हैं पर इसका असर कागजों तक सिमटा है। जन्म लेने वाले बच्चों का वजन औसतन सामान्य रहता है, लेकिन छह महीने बाद स्थिति बदल जाती है। बच्चों के वजन व लंबाई में बहुत ज्यादा इजाफा नहीं होता है। यही माता-पिता की सबसे बड़ी चिंता है। ऐसे सभी बच्चे एनआरसी (पोषण पुर्नवास केंद्र) और आंगनबाड़ी केंद्रों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।

बघौली ब्लॉक के बुड़ियापार गांव की रहने वाली संजू अपने डेढ़ साल के बेटे देवानंद के वजन और लंबाई को लेकर परेशान हैं। घर के बरामदे में बैठी संजू कहती हैं, बेटा जब पैदा हुआ तो वजन साढ़े तीन किलोग्राम था। छह माह बाद वजन घट गया। चिंता बढ़ी और बेटे को लेकर सरकारी अस्पताल पहुंच गई। तब पता चला कि अतिकुपोषित है। देवानंद को 16 दिनों तक पोषण पुनर्वास केंद्र में रखा गया। इस बीच 300 ग्राम वजन बढ़ गया, लेकिन शारीरिक विकास की समस्या बनी रही। डेढ़ वर्ष की उम्र तक बैठ नहीं सका। अब बैठना शुरू किया है। अब वजन चार किलोग्राम है। लंबाई 65 सेंटीमीटर है।

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इसी विकास खंड के लहरौली गांव की रहने वाली मारिया की बेटी एक साल छह माह की है। उसकी लंबाई 75 सेंटीमीटर और वजन चार किलो 800 ग्राम है। मारिया के मुताबिक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की मदद से बिटिया को पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया गया है। जन्म के समय बिटिया का वजन ढाई किलोग्राम था। अचानक छह माह बाद वजन घटने लगा।

मुख्यालय से सटे बालूशासन गांव के उमेश की पीड़ा भी कुछ ऐसी ही है। उमेश का बेटा अभिषेक चार साल का हो गया है। जन्म के समय वह बिल्कुल स्वस्थ्य था, लेकिन एक साल बाद भी वजन नहीं बढ़ा। औसतन लंबाई भी नहीं बढ़ सकी। चार साल बाद बेटे का वजन 12 किलो 200 ग्राम है जबकि लंबाई 100 सेंटीमीटर के आसपास है। खास बात यह है कि अभिषेक की दादी खुद आंगनबाड़ी सहायिका हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांव में अन्य कुपोषित बच्चों की स्थिति कैसी होगी।

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