TAD की 5 दिवसीय जनजाति माण्डना कला एवं भित्ति चित्रण कार्यशाला सम्पन्न

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जयपुर:माणिक्य लाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान उदयपुर द्वारा जनजाति कला एवं संस्कृति के संरक्षण एवं कलाकारों को प्रोत्साहन एवं मंच उपलब्ध कराने के उद्धेश्य से 5 दिवसीय माण्डना कला एवं भित्ति चित्रण कार्यशाला का आयोजन किया गया। 
अति0 आयुक्त, टीएडी डॉ0 वी0सी0 गर्ग ने बताया कि कार्यशाला में डूंगरपुर उदयपुर, राजसमंद, प्रतापगढ़ एवं बांसवाड़ा के कुल 37 कलाकारों ने भाग लिया। 

श्री गर्ग ने बताया कि इस आयोजन हेतु समाचार-पत्र में विज्ञप्ति प्रकाशित करवा कर कलाकारों से अपनी कलाकृतियों के नमुने सहित आवेदन आमंत्रित किये गये थे तथा प्राप्त आवेदनों में से 40 कलाकारों का चयन कर उन्हें  संस्थान में आमंत्रित कर कला सामग्री उपलब्ध करवायी गयी ।इन कलाकारों द्वारा अपनी श्रेष्ठ कलाकृतियों का निर्माण इन पांच दिवस में केनवास/हेण्डमेड शीट पर किया गया।

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अति0 आयुक्त टीएडी ने बताया कि इससे पूर्व वर्ष 2019 में मीणा जनजाति के तथा सहरिया जनजाति के माण्डना एवं भित्ति चित्रण कार्यशाला का आयोजन संस्थान द्वारा शाहाबाद जिला बांरा एवं टोंक जिले के खातोली गांव में किया गया था व प्राप्त कलाकृतियों की आदिमहोत्सव के दौरान प्रदर्शनी लगाई जा चुकी है। इस कार्यशाला में निर्मित कलाकृतियों की प्रदर्शनी आगामी समय में लगाई जायेगी।

उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला का समापन वेबीनार के माध्यम से हुआ जिसका संचालन श्रीमती ज्योति मेहता, संयुक्त निदेशक एवं श्री दिनेश उपाध्याय, कलाकार, टी.आर.आई.,उदयपुर द्वारा किया गया।

कार्यशाला के समापन के अवसर पर मुख्य अतिथि श्री जितेन्द्र कुमार  उपाध्याय, आयुक्त, जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग, उदयपुर ने अपने उद्बोधन में कार्यशाला की उपयोगिता एवं वर्तमान दौर में प्रयासों को सराहा एवं स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिये कार्य योजना बनाने के निर्देश दिये।

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कार्यशाला में प्रतिभागी जनजाति कलाकारों ने अपने क्षेत्र की आसपास की या कम से कम एक मां बाडी को सजाने संवारने व विभागीय कार्यो के प्रचार प्रसार यथा टी.बी. कन्ट्रोल प्रोग्राम में भी सहयोग देने का वायदा किया।

प्रतिभागी कलाकारों ने कार्यशाला से प्राप्त कलाकृतियों की प्रदर्शनी की रूप-रेखा तैयार कर वर्चुअल एवं फिजीकल प्रदर्शनी लगाने की आव8यकता प्रतिपादित की।
प्रतिभागियों ने इस प्रकार की कार्यशाला  को जनजाति कला को संरक्षण देने व प्राचीन परम्परा एवं कला के संरक्षण लिये उपयोगी बताया व कला को रोजगार से जोड़ने की आवश्यकता प्रतिपादित की।

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