वैर (मुरारी शर्मा एडवोकेट)। नैसर्गिक सौन्दर्य से कश्मीर घाटी की मानिन्द जयपुर के आमेर महल और भरतपुर के वैर कस्बे के सफेद महल के पाश्र्व में केशर उगाने के प्रयास भले ही सफल नहीं हो पाए लेकिन पुरा महत्व के स्थलों पर बनी केशर क्यारी आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। यह भी संयोग है कि सत्रहवीं शताब्दी में निर्मित आमेर के शीशमहल एवं सुख निवास में ताजी और महकती खुशबू के लिए इन केशर क्यारियों की रचना की गई। यह माना जाता है कि वैर के राजा प्रताप सिंह स्पेन से केसर के पौधे लाए थे, जिनके लिए सफेद महल के निकट केसर क्यारी बनाई गई थी। इनका आकार आमेर की केसर क्यारियों से काफी बड़ा था। विडम्बना यह है कि आमेर महल और केसर क्यारी देखने के लिए देश-विदेश के पर्यटकों की लम्बी कतारें लगती हैं, किंतु वैर अभी तक पर्यटन स्थल घोषित होने की बाट जोह रहा है।
प्रताप दुर्ग, सफेद महल और अनूठी केसर क्यारियों के जीर्णोद्धार से निखरा यह स्थल भी आमेर की तरह सैलानियों को लुभाने में पीछे नहीं रहेगा। सफेद महल की उल्टी छत पर कराई गई मीनाकारी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती नजर आती है। भरतपुर से 50 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम में स्थित कस्बा वैर प्रस्तर कला, वास्तुकला, चित्रकला व मूर्ति कला का बेजोड़ नमूना है। यहाँ की केसर क्यारियों की अद्भुत कलात्मक बनावट ऐसी है कि देखने वाला अपने आपको ठगा सा महसूस करता है। सफेद महल एवं प्रताप दुर्ग की स्थापत्य कला और दुर्ग के चारों तरफ फैली प्रताप गंगा नहर हर आने वाले दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करती नजर आती है।
भरतपुर के संस्थापक राजा सूरजमल के छोटे भाई राजा प्रताप सिंह ने 1726 ई. में वैर गढ़ की नींव डाली। राजा प्रताप सिंह द्वारा बसाया गया ऐतिहासिक कस्बा वैर अमूल्य ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे हुए है। प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. रांगेय राघव ने वैर को अपनी कर्म भूमि बनाकर 39 वर्ष के जीवन में कविताएं, कहानी, उपन्यास, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, नाटक, निबन्ध आदि विधाओं में 150 कालजयी कृतियों का सृजन किया। महाराजा प्रताप सिंह साहित्यानुरागी थे और विव्दजनों के संरक्षक थे। महाकवि सोमनाथ जैसी हस्तियों के कारण वैर को लघुकाशी कहा जाता है।
अनूठी केसर क्यारियां
सफेद महल के ठीक सामने तथा मदनमोहन मंन्दिर एवं लाल महल के सामने धरातल पर रियासत काल में बनी चूने की लाजवाब केसर क्यारियां कला की दृष्टि से दर्शकों का मन मोह लेती है। केसर क्यारियों की बनावट भी अलग-अलग डिजाइन व तरीके की है। कहीं गोलाकार आकृति में तो कहीं पंचकोणीय सितारे की भांति तो कोई चौकोर कहीं फूल पत्ती बेल की आकृति में है। इनकी विशेषता यह है कि एक क्यारी में पानी चलाने पर सभी क्यारियों में पानी आसानी से पहुंच जाता है। इन केसर क्यारियों में राजशाही जमाने के दौरान केसर लगाई गई। इस ही कारण ही इनका नाम केसर क्यारी पड़ा।
सफेद महल
प्रताप दुर्ग के पश्चिमी भाग में 42 बीघा क्षेत्र में फैली ऐतिहासिक प्रताप फुलवाडी के बीचों-बीच विश्व धरोहर के रूप में शान्ति और एकता का प्रतीक श्वेत महल बना हुआ है। इसके अग्र भाग में बंगाली व मुगल शैली के स्थापत्य कला के प्रतीक फव्वारे लगे हुए हैं। सफेद महल और केसर क्यारी राजा प्रताप सिंह की सैरगाह थी। कभी इस ऐतिहासिक फुलवाड़ी में फालसे तथा अंजीरों के पेड़ बडी़ संख्या में मौजूद थे। श्वेत महल के ठीक सामने पानी का बड़ा पक्का सरोवर आज भी है, जिसमें जगह-जगह फव्वारे लगे हुए हैं। श्वेत महल की तरफ उत्तर में लाल महल तथा दक्षिण में मदनमोहन जी का कलात्मक मंन्दिर अपनी भव्यता की कहानी कहते दिखाई देते हैं। इस ऐतिहासिक विरासत के आगे चन्द्रमा की चांदनी भी अपने आपको लजाती प्रतीत होती है।
संरक्षित क्षेत्र एंव सुरक्षित स्मारक
राज्य सरकार ने कस्बा वैर की ऐतिहासिक धरोहरों प्रताप दुर्ग, प्रताप फूलबाडी, सफेद महल, लाल महल, केसर क्यारियों तथा मदनमोहन जी मंन्दिर क्षेत्र को वर्ष 1986 में संरक्षित क्षेत्र और सुरक्षित स्मारक के रूप में घोषित कर रखा है। इस विरासत को मूल रूप में लाने के लिए राज्य सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा जीर्णोद्धार कार्य कराया गया, जिससे विरासत दमकने लगी थी। लेकिन अचानक जीर्णोद्धार कार्य बन्द होने के कारण तथा पुरातत्व के कर्मचारियों द्वारा ध्यान नहीं रखने के कारण फुलवाड़ी में अतिक्रमण की शिकायत होने लगी है तथा वेशकीमती जालियों को तोड़ा जाकर गोबर के ऊपले थपने लगे हैं।
नहीं की जा रही है कोई देखरेख
पुरातत्व विभाग इस ऐतिहासिक विरासत की तरफ कोई ध्यान नहीं दे पा रहा है। हालांकि विभाग ने एक कर्मचारी को देखरेख करने के लिए तैनात कर रखा है परन्तु मासिक पगार प्राप्त करने के अलावा कोई देखरेख का कार्य नहीं कर पा रहा है। देखरेख नहीं होने के कारण ही पत्थर की वेशकीमत की जालियों को नशेडियों द्वारा तोड़ दिया गया है लेकिन विभाग की ओर से कोई पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई गई है।