18 साल की उम्र में जेल, वकील बन खुद केस लड़ा, बाइज्जत बरी

जीहां, यह है भारत की न्याय व्यवस्था। वहीं न्याय व्यवस्था जहां जीते जी व्यक्ति पर मुकदमा दर्ज होता है और फैसला आता है मरने के बाद। मसला जो भी हो। बात है न्याय की। क्या उस व्यक्ति को न्याय मिला जिसने केस दायर किया। क्या उस परिवार को न्याय मिला जिसने सालों तक इस पीड़ा को झेला। क्या उन लोगों को न्याय मिल पाया जो देरी से न्याय मिलने के कारण अपना भविष्य खराब कर बैठे। जी नहीं, भारत की न्यायपालिका के पास इन बातों के जबाव नहीं है, क्योंकि जबाव होते तो अब तक कोई ना कोई ऐसा रास्ता निकल चुका होता जिससे जीते जी व्यक्ति को और तमाम उन लोगों को जो उस न्याय के इंतजार में बैठे हैं जिन्हें समय पर अन्याय के खिलाफ न्याय मिल पाता। ऐसा ही कई उदाहरणों में एक नाम है अमित चौधरी का। पढि़ए अमित की कहानी…

जवानी की दस्तक के साथ जेल की देहरी दिखी

अमित मेरठ जिले के बागपत कस्बे के गांव किरठल निवासी हैं। वर्ष 2011 में 18 वर्ष के थे और अपनी बहन के गांव गए हुए थे। यहां किसी पुलिसकर्मी की हत्या के आरोप में अमित सहित 17 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इस समय वे सैकंड ईयर के छात्र थे। आरोपों के चलते दो साल जेल में रहे। 2013 में जेल से बाहर आने के बाद गुडगांव में वकील के पास मुंशी के रूप में काम किया। तंगहाल के चलते रात में सड़कों पर कैलेंडर भी बेचे। साथ ही ग्रेजुएशन के बाद एलएलबी और एलएलएम किया। इसके बाद अपना केस खुद लड़ा और स्वयं को निर्दोष साबित करने में सफल रहे। पैरवी के दौरान कोर्ट में उस गवाह को पेश किया जिसने अमित को फंसाया था। कोर्ट रूम में काला कोट पहने अमित से गवाह ने कहा- ‘वकील साहब, आप किस पक्ष से केस लड़ रहे हैं।’ गवाह पहचान ही नहीं पाया कि यह वही लड़का है जिसे बरसों पहले झूठे मुकदमे में फंसाया गया था।