सीएम को भेजा ज्ञापन: शिक्षकों व कार्मिकों की मांगों का हो निस्तारण

करौली। राजस्थान समग्र शिक्षक संघ प्रदेशाध्यक्ष डॉ. उदयसिंह डिंगार ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ज्ञापन भेजकर शिक्षकों के प्रकरणों के निस्तारण व भुगतान कराने की मांग की है। संगठन के जिलाध्यक्ष रूपसिंह गोरेहार ने बताया कि प्रदेशाध्यक्ष डिंगार ने ज्ञापन में बताया है कि शिक्षकों के वित्त विभाग एवं शिक्षा विभाग से सम्बन्धित सैकड़ों प्रकरणों में करोड़ों रुपए का भुगतान कर न्याय किया जाना चाहिए।
तीन सूत्री मांग पत्र में बताया है कि अध्यापक भर्ती 2006 के तहत एक ही विज्ञप्ति, परीक्षा, वरीयता एवं चयनित तिथि होने के उपरांत भी एसटीसी योग्यताधारी चयनित अध्यापकों को प्राथमिक विद्यालयों में 31 दिसंबर 2007 से पूर्व अर्थात सन 2007 में ही नियुक्ति दी गई थी, जबकि उनसे उच्च योग्यताधारी बीएड एवं समकक्ष चयनित अध्यापकों को उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 31 दिसंबर 2007 के पश्चात अर्थात सन् 2008 में नियुक्ति दी गई थी। इस कारण बीएड योग्यताधारी अध्यापकों को एक ही भर्ती, वरीयता एवं चयन तिथि होने के उपरांत सीधे ही एक वेतन वृद्धि का नुकसान पहुंचाया गया। इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय अनुसार प्रभावित अध्यापकों को नोशनल परिलाभ दिया जाना चाहिए था, लेकिन शिक्षा विभाग एवं कतिपय शिक्षा अधिकारियों द्वारा तथ्यों से परे जाकर गोलमाल कर इन प्रभावित अध्यापकों को नोशनल परिलाभ से भी वंचित किया जा रहा है, जो कि न्याय के नैसर्गिंक सिद्धांतों के विपरीत है। उन्होंने इस सम्बन्ध में अध्यापकों को राहत दिलवाने की मांग उठाई है।

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इसी प्रकार ज्ञापन में बताया कि प्रदेश में छठवां वेतनमान एक जनवरी 2006 से लागू माना गया था। वित्त विभाग की अधिसूचना 28 जून 2013 के अनुसार तृतीय श्रेणी शिक्षकों एवं प्रबोधकों के ग्रेड पे में वृद्धि की जा कर उन्हें न्यूनतम 12900 के प्रारंभिक वेतन आधार पर गणना की जानी चाहिए थी, लेकिन खेद का विषय है कि 1 जनवरी 2006 के पश्चात एवं 1 जुलाई 2013 के पूर्व नियुक्त अथवा प्रोबेशन पूर्ण करने वाले अध्यापकों एवं प्रबोधकों के प्रारंभिक वेतन की गणना 11170 के आधार पर की गई। इस प्रकार उक्त अवधि के मध्य नियुक्त अध्यापकों एवं प्रबोधकों को 12900 के आधार पर गणना कर वेतनमान देने से वंचित किया गया, जबकि 1 जुलाई 2013 के पश्चात नियुक्त अथवा प्रोबेशन पूर्ण करने वाले अध्यापकों एवं कार्मिकों को 12900 के आधार पर गणना कर वेतनमान दिया गया। इस फिक्सेशन त्रुटि में सुधार कर 1 जनवरी 2006 के पश्चात एवं 1 जुलाई 2013 से पूर्व नियुक्त समस्त अध्यापकों एवं प्रबोधकों को उनकी नियुक्ति तिथि से न्यूनतम 12900 के आधार पर पुर्नगणना कर फिक्सेशन त्रुटि दूर कर वेतनमान किया जाना चाहिए। ज्ञापन में तीसरी मांग के रूप में बताया कि प्रदेश में अन्य कार्मिकों को चयनित वेतनमान 9, 18 एवं 27 वर्षों के आधार पर दिया जाता है, जबकि व्याख्याताओं को यह चयनित वेतनमान 10, 20 एवं 30 वर्षों के आधार पर दिया जाता है। इस कारण कई वरिष्ठ अध्यापक जो कि 20 वर्ष की सेवा अवधि में व्याख्याता बन जाते हैं उन्हें अगला चयनित वेतनमान 27 वर्ष के स्थान पर 30 वर्ष पर दिया जाता है, यह उचित नहीं है। इस कारण कई बार कई प्रकरणों में तृतीय श्रेणी एवं द्वितीय श्रेणी अध्यापक उनके साथ ही नियुक्त अध्यापक के कालांतर में व्याख्याता बन जाने से उनसे अधिक वेतन प्राप्त करते हैं, जबकि व्याख्याता बनने वाले को व्याख्याता होते हुए भी उन्हें तृतीय श्रेणी अध्यापक से भी कम वेतन मिलता है। यह स्थिति गंभीर वेतन विसंगति एवं अन्यायपूर्ण है। उन्होंने ज्ञापन में व्याख्याताओं को भी तृतीय श्रेणी अध्यापकों एवं द्वितीय श्रेणी अध्यापकों तथा अन्य कार्मिकों की भांति 9, 18 एवं 27 वर्ष के आधार पर ही चयनित वेतनमान दिलवाने की मांग की है।
प्रदेश अध्यक्ष डॉ. डिंगार, प्रदेश महामंत्री हरीश चंद्र प्रजापति, प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष ललित मोहन शर्मा ने शिक्षा मंत्री, मुख्य शासन सचिव, अतिरिक्त मुख्य शासन सचिव शिक्षा विभाग एवं प्रमुख शासन सचिव वित्त एवं कार्मिक विभाग को भी ज्ञापन की प्रति भेजकर राजस्थान समग्र शिक्षक संघ की मांगों पर तत्काल कार्रवाई कराने का आग्रह किया है।