मौत से छीनी जिंदगी, सुनाई आपबीती

सिलक्यारा टनल से 17 दिन बाद मौत के सिर पर पांव रखकर बाहर आए मजदूरों ने बयां किया दर्द

गंगापुर सिटी/लखनऊ। मौत खामोशी है चुप रहने से हमेशा के लिए चुप्पी लग जाएगी, जिंदगी आवाज है बातें करो, बातें करो…उत्तरकाशी की सिलक्यारा टनल से 17 दिन बाद मौत के सिर पर पांव रखकर बाहर आए 41 मजदूरों से बेहतर इसे कोई नहीं समझ सकता। इनमें यूपी के भी 8 मजदूर थे। यूपी सरकार उन्हें शुक्रवार को लखनऊ ले आई।

श्रावस्ती के मोतीपुर कलां निवासी अंकित भी सुरंग में फंस गए थे। वह बताते हैं, टनल बंद होने के करीब 18 घंटे बाद एक आवाज सुनाई दी। हम उसकी दिशा तलाशने लगे। पता चला कि पानी के पाइप से आई वह आवाज टनल के बाहर से थी। आवाज सुनकर हमारी रगों में जिंदगी की उम्मीद दौड़ पड़ी। एक-दूसरे को हौसला देते दिन कट गए।

सिलक्यारा में 12 नवंबर को निर्माणाधीन टनल में मिट्टी धंसने से 41 मजदूर फंस गए थे। इन्हें 28 नवंबर को बाहर निकाला जा सका था। एम्स ऋषिकेश में मेडिकल जांच के बाद यूपी के मजदूरों (श्रावस्ती के अंकित, राममिलन, सत्यदेव, संतोष, जयप्रकाश, रामसुंदर, खीरी के मंजीत व मीरजापुर के अखिलेश कुमार) को सरकार शुक्रवार सुबह लखनऊ ले आई। इन्हें सरकारी गेस्ट हाउस नैमिषारण्य में ठहराया गया।

धमाके की आवाज और अनहोनी मीडियाकर्मियों से जूझ रहे अंकित से नजर मिली तो उसमें अनचाहा डर और नाराजगी दोनों ही भरी थी। उन्होंने कहा, इतना तो 17 दिन पाइप से बोलना-चिल्लाना नहीं पड़ा, जितना पिछले तीन दिनों से आप लोग बोलवा रहे हैं। जो हम याद नहीं करना चाहते, आप लोग भूलने नहीं दे रहे। कुछ सैकंड खामोशी के बाद मैंने बात आगे बढ़ाई, हम दोनों ही खोदाई करते हैं, आप टनल खोदते हैं, हम एहसास। अंकित मुस्कराए और फ्लैशबैक शुरू हो गया- मैं वेल्डर हूं। हमारी शिफ्ट सुबह 8 बजे खत्म होनी थी। उस दिन दीपावली थी, इसलिए हम लोग एक-डेढ़ घंटे पहले ही निकलने वाले थे। सुबह करीब पांच बजे तेज धमाका हुआ। हम लोग उधर भागे तो पता चला कि मलबा गिर गया है। कुछ देर में ही आभास हो चुका था कि टनल से निकलने के सभी रास्ते बंद हो चुके हैं।

सुरंग में फंसे मजदूरों का नेतृत्व कर रहे शबा अहमद और गब्बर सिंह ने बताया कि सभी 41 मजदूर भाई की तरह रहते थे। मिलजुल कर खाते थे। सुबह सभी योगाभ्यास करते, रात का खाना खाने के बाद सुरंग में टहलते और आशावादी बातें करते हुए एक दूसरे को हिम्मत बंधाते।

पानी का पाइप बना सहारा

संतोष ने बताया कि 12-15 घंटे तक बाहर से कोई संपर्क नहीं हो पाया। टनल में दो पाइप पड़े थे। एक पानी अंदर लाने के लिए, दूसरा बाहर निकालने के लिए। करीब 18 घंटे बाद हमें पाइप से आवाज सुनाई दी। इसके साथ ही बाहर से हमारा संवाद शुरू हुआ। पाइप के जरिए लइया, सूखे मेवे आने शुरू हुए। टनल ढाई किमी लंबी है, इसलिए शुरुआत में दो-दिन तक ऑक्सीजन की कोई परेशानी नहीं थी, बाद में उस पाइप से कंप्रेशर के जरिए ऑक्सीजन भी पहुंचाई जाने लगी।